________________ 3) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध : पानी से भरा हुआ तालाब जब एकदम सूख जाता है, तब उसमें दरारें पड़ जाती हैं, जब तक पुनः पानी का संयोग न हो तब तक वे दरारें बनी रहती हैं, उसी प्रकार जो क्रोध कुछ लंबे समय तक (वर्ष पर्यंत) रहता है, वह अप्रत्याख्यानीय क्रोध है | 7) अनंतानबंधी क्रोध : पर्वत में जब दरारें पड़ जाती हैं तो वे कभी जुडती नहीं हैं / बस, इसी प्रकार जो क्रोध अनेक उपाय करने पर भी जीवन पर्यंत शांत नहीं होता है, वह अनंतानुबंधी क्रोध है / अहंकार 1) संज्वलन मान : जैसे बेंत को सामान्य श्रम से मोड़ा जा सकता है, उसी प्रकार जो अहंकार अल्प प्रयास से दूर हो जाता है, उसे संज्वलन मान कहते हैं / 2) प्रत्याख्यानीय मान : यह अहंकार लकड़ी के समान है / सूखी लकड़ी को पानी या तैल आदि में रखने से वह नर्म हो जाती है, बस, उसी प्रकार जो अहंकार थोड़ी कठिनाई से दूर होता है, वह प्रत्याख्यानीय मान है / 3) अप्रत्याख्यानीय मान : यह अहंकार हड्डी के समान है / हड्डी को मोडना कठिन है, उसी प्रकार जो अहंकार जल्दी दूर नहीं होता है, वह अप्रत्याख्यानीय मान है / 4) अनंतानुबंधी मान : यह मान पत्थर के स्तंभ समान है / जैसे पत्थर के स्तंभ को मोड़ना शक्य नहीं है, उसी प्रकार जिस अहंकार को दूर करना अत्यंत ही कठिन है, वह अनंतानुबंधी मान है / मायाऽवलेहि-गोमुत्ति-मिंढसिंग-घणवंसिमूल समा / लोहो हलिद्द खंजण-कद्दम किमिराग सामाणो ||2011 शब्दार्थ माया माया, अवलेहि लकडी की छाल , गोमुत्ति बैल की मूत्रधारा, मिंढसिंग भेड के सींग, घणवंस बाँस का मूल , समा समान | लोहो लोभ, हलिद्द हल्दी, खंजणकाजल, कद्दम कीचड़, किमिराग=किरमिची रंग, सामाणो=समान | कर्मग्रंथ (भाग-1)) 143