________________ / कतिपय संज्ञाएँ .................. तस चउ थिर छक्कं, अथिर छक्कं सुहुमतिग थावर चउक्कं / सुभगतिगाइ-विभासा, तयाइ संखाहिं पयडीहिं / / 28 / / वण्ण चउ अगुरुलहुचउ-तसाइ दुति चउरछक्कमिच्चाइ / इय अन्नावि विभासा, तयाइ संखाहि पयडीहिं / / 29 / / शब्दार्थ तसचउत्रस चतुष्क, थिर छक्कं स्थिर षट्क, अथिर छक्कं अस्थिर षट्क, सुहुमतिग=सूक्ष्म त्रिक, थावर चउक्कं स्थावर चतुष्क, सुभगतिगाइ-सुभग त्रिक आदि, विभासा=विभाषाएँ, तयाइ-वह आदि, संखाहिं संख्या द्वारा, पयडीहिं प्रकृतियों से / वण्णचउ=वर्ण चतुष्क, अगुरुलहुचउ=अगुरुलघु चतुष्क, तसाइप्रस आदि, दुति-चउर छक्कं द्विक, त्रिक, चतुष्क, षट्क, इच्चाइ-इत्यादि, इय इस प्रकार, अन्नावि दूसरी भी / गाथार्थ त्रस चतुष्क, स्थिर षट्क, अस्थिर षट्क, सूक्ष्मत्रिक, स्थावर चतुष्क, सुभगत्रिक आदि जो पारिभाषिक संज्ञाएँ हैं, उनमें प्रारंभ होनेवाली प्रकृति के नाम सहित आगे जो संख्या दी गई है, उतनी प्रकृति लेनी चाहिए / वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, त्रस द्विक, त्रस त्रिक, त्रस चतुष्क, त्रस षट्क आदि संज्ञाएँ हैं / इस प्रकार अन्य भी उन-उन प्रकृतियों के नाम गिनने से दूसरी-दूसरी संज्ञाएँ समझ लेनी चाहिए / विवेचन कर्म स्तव तथा आगम आदि ग्रंथों में ग्रंथ की लाघवता के लिए कुछ प्रकृति के नाम देकर उसके आगे दो तीन आदि संख्या बताकर कुछ संज्ञाएँ बताई गई हैं / जो इस प्रकार हैं कर्मग्रंथ (भाग-1)) 159