________________ में जो अप्रीति - उद्वेग का भाव पैदा होता है, उसे अरति कहते हैं | 4) भय : जिस कर्म के उदय से निमित्त मिलने पर अथवा बिना निमित्त ही भय पैदा होता हो, उसे भय मोहनीय कहा जाता है | भय के सात प्रकार हैं। 1) इहलोक भय 2) परलोक भय 3) चोरी का भय 4) अकस्मात् भय 5) आजीविका भय 6) मृत्यु भय और 7) अपयश भय / 5) शोक : जिस कर्म के उदय से निमित्त मिलने पर या निमित्त नहीं मिलने पर भी जो शोक का भाव पैदा होता है, उसे शोक मोहनीय कहा जाता 6) जुगुप्सा : जिस कर्म के उदय से सकारण या निष्कारण, बीभत्स पदार्थों को देखकर जो घृणा पैदा होती है, उसे जुगुप्सा मोहनीय कहते हैं / पुरिसित्थि तदुभयं पइ, अहिलासो जब्बसा हवइ सो उ / थी नर-नपु वेउदयो, फुफुम तण नगर दाहसमो ||22 / / शब्दार्थ पुरिसित्थि-पुरुष , स्त्री / तदुभयं वे दोनों / पइ-प्रति, अहिलासो अभिलाषा, जबसा=जिस कारण, हवइ-होती है / थी स्त्री, नर-पुरुष, नपु=नपुंसक, वेउदओ=वेद का उदय, फुफुम करीष, तण-तृण, नगरदाह नगर की आग, समो=समान / गाथार्थ जिस कर्म के उदय से पुरुष, स्त्री और पुरुष-स्त्री दोनों के साथ रमण करने की इच्छा पैदा होती है, उसे क्रमशः स्त्रीवेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद कहते हैं / इन तीनों वेदों की अभिलाषा क्रमशः करीषाग्नि, तृणाग्नि और नगरदाह के समान है। विवेचन आत्मा का मूलभूत स्वभाव अवेदी है / वेद के उदय से ही संसारी आत्मा को स्त्री, पुरुष आदि के साथ मैथुन सेवन की इच्छा होती है / मोहनीय कर्मग्रंथ (भाग-1) EN146JE