________________ * कृष्ण के आगमन को जानकर, भयभीत बने शोमिल ब्राह्मण की मृत्यु हो गई थी। 2. दंड, शस्त्र , डोरा, अग्नि, पानी में गिरना, मल - मूत्र के अवरोध तथा विषभक्षण से भी आयुष्य क्षीण हो जाता है | 3. अति आहार करने से अथवा अत्यंत भूखे रहने से भी आयुष्य का नाश हो जाता है : संप्रति की आत्मा ने पूर्व भव में , भिखारी के भव में दीक्षा अंगीकार करने के बाद अति आहार कर लिया था, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई थी। 4. शूल की असह्य पीड़ा, नेत्र - पीड़ा आदि के कारण भी आयुष्य समाप्त हो जाता है। 5. दीवार, बिजली आदि के गिरने से भी आयुष्य समाप्त हो जाता है | 6. सर्पदंश आदि से भी आयुष्य क्षीण हो जाता है | 7. श्वासोच्छवास के अवरोध से भी आयुष्य क्षीण हो जाता है / जो आयुष्य बँधा हुआ होता है, उसमें किसी भी समय में वृद्धि नहीं हो सकती है / व्यवस्थित जीवनचर्या रखने से व्यक्ति दीर्घकाल तक जीता हैं, इसका तात्पर्य यही है कि उसके आयुष्य पर किसी प्रकार का उपघात नहीं लगा / इसी को व्यवहार भाषा में 'आयुष्य बढ़ गया' कहते हैं, परंतु वास्तव में बँधे हुए आयुष्य में कभी वृद्धि नहीं होती है। देवता, नारक तथा असंख्य वर्ष के आयुष्य वाले युगलिक मनुष्य व तिर्यंच अपने वर्तमान आयुष्य में छह मास बाकी रहने पर आगामी भव के आयुष्य का बंध करते हैं / सिर्फ चरमशरीरी आत्माएँ अपने जीवन में आयुष्य कर्म का बंध नहीं करती हैं, इनके सिवाय सभी आत्माएँ जीवन में एक बार आगामी भव के आयुष्य का बंध अवश्य करती हैं | कर्मग्रंथ (भाग-1) 1152