________________ इंद्र की इस प्रार्थना को सुनकर महावीर प्रभु ने भी कह दिया, 'यह संभव नहीं है / तीर्थंकर भी, अपने आयुष्य को बढ़ा नहीं सकते हैं / ' * तीर्थंकर परमात्मा अनंत शक्तिशाली होने पर भी अपने आयुष्य को बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं। . आयुष्य कर्म, बेड़ी के समान है / यह कर्म जीवात्मा को एक भव में जकड़े रखता है / जब तक आयुष्य कर्म का उदय रहता है, तभी तक व्यक्ति जीवित रह सकता है-आयुष्य कर्म पूरा होने के साथ ही व्यक्ति को मरना पड़ता है। * ज्ञानावरणीय आदि सात कर्मों का बंध प्रतिसमय होता है जब कि आयुष्य कर्म का बंध जीवन में एक ही बार होता है / * वर्तमान भव में आगामी भव के आयुष्य का बंध होता है | * आयुष्य का बंध एक ही बार होने से आयुष्य बंध का समय अत्यंत ही महत्त्व का है। * वर्तमान आयुष्य का दो तिहाई भाग व्यतीत होने पर आगामी भव के आयुष्य का बंध होता है / उस समय आयुष्य का बंध नहीं हुआ हो तो अवशिष्ट आयुष्य के दो-तिहाई भाग बीतने पर आयुष्य का बंध होता है / उस समय भी आयुष्य बंध नहीं हो तो मृत्यु के पूर्व अन्तर्मुहूर्त काल में तो आगामी भव के आयुष्य का बंध अवश्य होता है / जैसे ट्रेन में बिना टिकिट यात्रा नहीं होती है, उसी प्रकार जीवात्मा आयुष्य कर्म का बंध किये बिना आगामी भव प्राप्त नहीं कर सकता है | ___ आयुष्य का बंध एक ही बार होता है, उस समय जीवात्मा के जो अध्यवसाय होते हैं, वैसी ही गति के आयुष्य का बंध हो जाता है | श्रेणिक महाराजा भविष्य में तीर्थंकर होने वाले होने पर भी आयुष्य बंध के समय उनका ध्यानलेश्या आदि शुभ नहीं होने से उन्होंने नरक आयुष्य का बंध कर दिया था / इसके परिणामस्वरूप उन्हें मरकर नरक में जाना पड़ा। आयुष्य और आयुष्य कर्म में फर्क है / आयुष्य कर्म कारण है और आयुष्य उसका फल है / कर्मग्रंथ (भाग-1) 150