________________ 15 दिन की स्थिति, देवगति के आयुष्य का बंध और यथाख्यात चारित्र गुण का घात समझना चाहिए / यहाँ अनंतानुबंधी आदि की जो समय मर्यादा बताई गई है, वह व्यवहार नय की अपेक्षा से समझना चाहिए / बाहुबली को संज्वलन मान का उदय 15 दिन तक रहना चाहिए, उसके बदले एक वर्ष तक रहा और प्रसन्नचंद्र राजर्षि को जो अनंतानुबंधी कषाय जीवन भर रहना चाहिए था, वह मात्र अन्तर्मुहूर्त तक ही रहा / अनंतानुबंधी कषाय का उदय होने पर भी कुछ मिथ्यादृष्टि नौवें ग्रैवेयक में भी चले जाते हैं / इन सोलह कषायों के भी अवांतर कुल 64 भेद होते हैं / जैसे अनंतानुबंधी क्रोध के चार भेद होते हैं :1) अनंतानुबंधी अनंतानुबंधी क्रोध 2) अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यानीय क्रोध 3) अनंतानुबंधी प्रत्याख्यानीय क्रोध 4) अनंतानुबंधी संज्वलन क्रोध / इस प्रकार अप्रत्याख्यानीय, प्रत्याख्यानीय व संज्वलन के भी 4-4 भेद करने पर कुल 64 भेद हो जाते हैं / यद्यपि अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ का चारित्र मोहनीय में समावेश किया गया है, फिर भी वे चार कषाय सम्यक्त्व का भी घात करते हैं, इसीलिए अनंतानुबंधी चार तथा दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियों को 'दर्शन सप्तक' भी कहा जाता है अर्थात् इन सात प्रकृतियों का संपूर्ण क्षय होने पर ही आत्मा में क्षायिक सम्यक्त्व गुण पैदा होता है / मिथ्यात्व और अनंतानुबंधी का विपाकोदय रुके तो ही आत्मा में सम्यग्दर्शन गुण प्रगट हो सकता है, अन्यथा नहीं / अप्रत्याख्यानीय कषाय का उदय हो तो जीव आंशिक भी जीव हिंसा आदि पापों का त्याग नहीं कर पाता है / अप्रत्याख्यानीय कषाय का विपाकोदय रुके तो ही देशविरति प्राप्त हो सकती है / प्रत्याख्यानीय कषाय का विपाकोदय हो तो जीवात्मा सर्वविरति प्राप्त नहीं कर पाती है अर्थात् प्रत्याख्यानीय कषाय का उदय सर्वविरति में प्रतिबंधक है / कर्मग्रंथ (भाग-1)) 1141