________________ निद्रा-पंचक सुह पडिबोहा निद्दा, निद्दा-निद्दा य दुक्ख पडिबोहा / पयला ठिओवहिस्स, पयलपयला उ चंकमओ ||1|| शब्दार्थ सुह पडिबोहा=सुखपूर्वक जगे, निद्दा निद्रा / निद्दानिद्दा निद्रानिद्रा, दुक्ख पडिबोहा कठिनाई से जगे / पयला=प्रचला, ठिओवट्ठिस्स-खड़े और बैठे / पयल पयला=प्रचला प्रचला, चंकमओ=चलतेचलते / गाथार्थ सोया हुआ व्यक्ति सुखपूर्वक जागृत हो उसे निद्रा कहते हैं, जिसे मुश्किल से जगाया जा सके, उसे निद्रा निद्रा कहते हैं / खड़े-खड़े या बैठे बैठे नींद आ जाय उसे प्रचला कहते हैं और चलते चलते ही नींद आ जाय तो उसे प्रचला-प्रचला कहते हैं | विवेचन इस गाथा में चार प्रकार की निद्राओं के नाम और उनके लक्षण बताए गए हैं। निद्रा का उदय होने पर जीव निश्चेष्ट जैसा हो जाता है, निद्रा में देखने, सुनने, सूंघने आदि की सभी क्रियाएँ बंद हो जाती हैं / अतः नींद में रहे व्यक्ति को किसी भी इन्द्रिय द्वारा होनेवाला सामान्यबोध भी नहीं होता है / निद्रा पंचक को सर्वघाती कहा गया है / चुटकी बजाने पर अथवा मात्र सामान्य आवाज करने पर व्यक्ति जग जाता है, उसे निद्रा का उदय कहा जाता है अर्थात् इस कर्म के उदय से व्यक्ति को सामान्य नींद आती है और व्यक्ति तुरंत ही जग जाता है / उदा. कुत्ते की नींद / थोड़ी सी आवाज होने पर कुत्ता जग जाता है / कर्मग्रंथ (भाग-1)) है. 121 निता SHARMA