________________ द्वारा होनेवाले सामान्य ज्ञान को दर्शन कहते हैं / यह आवरण चार प्रकार का 1. चक्षदर्शनावरणीय : जिस कर्म के उदय से जीवात्मा को आँख नहीं मिलती है अथवा मिली हो तो भी कमजोर होती है | जन्मांधता, मोतिया बिंदु, झामरा, रतांधता आदि अनेक प्रकार की आँख की बीमारियाँ इस कर्म के उदय से होती है / इस कर्म का उदय आँख से होने वाले सामान्य ज्ञान में बाधक बनता है। 2. अचक्षु दर्शनावरणीय : आँख को छोड़कर, त्वचा, जीभ, नाक और कान के द्वारा होनेवाले सामान्य बोध को अचक्षु दर्शन कहते हैं / इस कर्म के उदय से आँख सिवाय की शेष चार इन्द्रियाँ बराबर नहीं मिलती हैं अथवा गड़बड़वाली मिलती हैं | चर्मरोग, गूंगापना, नाक के रोग, बहरापना, कान के रोग आदि इस कर्म के उदय के कारण होते हैं / अर्थात् इस कर्म के उदय से चक्षु सिवाय चार इन्द्रियों तथा मन से होने वाले सामान्य ज्ञान में बाधाएँ खड़ी होती हैं। 3. अवधि दर्शनावरणीय : अवधिज्ञान के पहले अवधिदर्शन पैदा होता है / उस अवधिदर्शन को रोकनेवाला कर्म अवधिदर्शनावरणीय कर्म कहलाता है। 4. केवलदर्शनावरणीय : आत्मा में रहे केवलदर्शन गुण को रोकने वाला कर्म केवल दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है / __ सूर्य प्रकाश देता है, परंतु उस प्रकाश का सही उपयोग करने के लिए पुरुषार्थ तो हमें ही करना पडता है, सद्गुरु हमें सही दिशा का बोध देते हैं, परंतु उस दिशा की ओर चलने का पुरुषार्थ तो हमें स्वयं ही करना पड़ता है। VOJana कर्मग्रंथ (भाग-1) 1120