________________ सम्यक्त्व के भेद) 1) क्षायिक सम्यक्त्व : मिथ्यात्व मोहनीय , मिश्र मोहनीय और समकित मोहनीय तथा अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ रूप इन सात प्रकृतियों का मूल से क्षय होने पर जिस सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, उसे क्षायिक सम्यक्त्व कहते हैं / ___2) औपशमिक सम्यक्त्व : समकित मोहनीय, मिश्रमोहनीय और मिथ्यात्व मोहनीय के उपशम को औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं | 3) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व : मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के क्षय तथा उपशम से तथा सम्यक्त्व मोहनीय के उदय से आत्मा में होने वाले परिणाम को क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं / उदय में आए हुए मिथ्यात्व के पुद्गलों का क्षय तथा जो उदय को प्राप्त नहीं हुए हैं, उन पुद्गलों के उपशम से मिथ्यात्व मोहनीय का क्षयोपशम होता है / यहाँ मिथ्यात्व का उदय प्रदेशोदय की अपेक्षा समझना चाहिए, न कि रसोदय की अपेक्षा से / / 4. वेदक सम्यक्त्व : क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में रहा हुआ जीव जब सम्यक्त्व मोहनीय के अंतिम पुद्गल रस का अनुभव करता है, उस समय के उसके परिणाम को वेदक सम्यक्त्व कहते हैं, इस सम्यक्त्व के बाद जीव अवश्य ही क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करता है / 5. सास्वादन सम्यक्त्व : उपशम सम्यक्त्व से भ्रष्ट बनी आत्मा जब मिथ्यात्व के अभिमुख होती है, तब मिथ्यात्व की प्राप्ति के पूर्व के उसके अध्यवसाय को सास्वादन सम्यक्त्व कहते हैं / इस सम्यक्त्व का काल 6 आवलिका प्रमाण ही है और यह सम्यक्त्व, सम्यक्त्व से पतित आत्मा को ही होता है / मीसा न राग दोसो, जिणधम्मे अंत मह जहा अन्ने / नालिअरदीव मणुणो, मिच्छं जिण धम्म-विवरीअं ||16 / / शब्दार्थ मीसा=मिश्र, राग दोसो राग-द्वेष, जिणधम्मे जिनधर्म में, अंत मुह अन्तर्मुहूर्त, जहा=जिस प्रकार, अन्ने अन्न के विषय में, नालिअर दीव-नालियर द्वीप, मणुणो मनुष्य को , मिच्छं=मिथ्यात्व, जिणधम्म जिन कर्मग्रंथ (भाग-1)) 135 aurat