________________ योगोद्वहन प्रारंभ किए / तीन अध्ययन की समाप्ति के बाद चौथे अध्ययन का अभ्यास प्रारंभ हुआ...और उसी समय पूर्व भव में बँधा हुआ श्रुतज्ञानावरणीय कर्म उदय में आया / बस, अब खूब मेहनत करने पर भी उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता है / चौथे अध्ययन की अनुज्ञा के लिए आयंबिल तप जरूरी है...और जब तक कंठस्थ न हो तब तक चौथे अध्ययन की अनुज्ञा नहीं हो सकती है / उनके गुरुदेव तो 'अनुज्ञा' करने के लिए तैयार हो गए परन्तु उन्होंने कहा, 'भगवन् ! सूत्र की अनुज्ञा की क्या विधि है ?' गुरुदेव ने कहा, 'जब तक यह अध्ययन याद न हो जाय तब तक आयंबिल करने पड़ते हैं / ' उन्होंने कहा, 'भगवंत ! तो मैं भी जब तक यह अध्ययन याद नहीं होगा तब तक आयंबिल करूंगा / ' गुरुदेव ने उन्हें आयंबिल करने के लिए अनुमति प्रदान की / वे मुनि रोज आयंबिल करने लगे और सूत्र को याद करने के लिए परिश्रम करने लगे। इस प्रकार आयंबिल करते हुए उन्हें 12 वर्ष बीत गए...फिर भी वे हताश नहीं हए / वे अपने पाप का पश्चाताप करने लगे | इस प्रकार एक दिन शुभ ध्यान में आगे बढ़ते हुए उनके सभी अंतराय टूट गए...और उन्हें केवलज्ञान हो गया / इस प्रकार ज्ञान की निंदा-आशातना करने से उन्होंने ज्ञानावरणीय कर्म का बंध किया और तप तथा पश्चाताप के द्वारा उसी कर्म का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त किया / अपने जीवन में भी ज्ञान, ज्ञानी व ज्ञान के साधनों की आशातना न हो जाय उसके लिए खूब खूब प्रयत्नशील बनना चाहिए | कर्मग्रंथ (भाग-1)) 4101