________________ है जबकि मनःपर्यवज्ञानी अवधिज्ञान की अपेक्षा अनंतवें भाग प्रमाण, मात्र मनोद्रव्य को जानते हैं। 5) अवधिज्ञान परभव में साथ में जा सकता है, जब कि मनःपर्यवज्ञान एक ही भव में रहता है। सम्यक्त्व भ्रष्ट होने पर अवधिज्ञान, विभंगज्ञान में बदल जाता है, जबकि मनःपर्यवज्ञान कभी विपरीत नहीं होता है | मनोद्रव्य रूपी होने से विशुद्ध अवधिज्ञान से मन के विचारों को भी जाना जा सकता है | तारक अरिहंत परमात्मा , अनुत्तर देवों को द्रव्य मन से ही उत्तर प्रदान करते हैं / केवलज्ञान केवलज्ञान अर्थात् संपूर्ण ज्ञान ! केवलज्ञान के द्वारा समस्त द्रव्यों के समस्त पर्यायों को प्रत्यक्ष देखा-जाना जा सकता है। केवलज्ञान के भेद-प्रभेद नहीं है। केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद आत्मा उसी भव में मोक्ष में जाती है / इस प्रकार ज्ञान के 51 भेद हुए | मतिज्ञान 28 भेद श्रुतज्ञान 14 भेद अवधिज्ञान 6 भेद मनःपर्यवज्ञान 2 भेद केवलज्ञान 51 भेद एसिं जं आवरणं, पडुब चक्खुस्स तं तयावरणं | दंसण चउ पण निद्दा वित्तिसमं दंसणावरणं / / 9 / / शब्दार्थ एसिं=इन ज्ञानों का , जंजो, आवरण आच्छादन, पडुब्ब-पट्टे की तरह, चक्षुस्स आँख का, तं-वह, तयावरणं-उसका आवरण, (कर्मग्रंथ (भाग-1) 114 1 भेद