________________ श्राविका प्रजा तुल्य है / व्यवस्था संचालन हेतु मूलगुण तथा उत्तरगुण की आराधनाएँ हैं | उन आराधनाओं का जो भंग करता है, उसे दंड स्वरूप प्रायश्चित्त दिया जाता है। इन छेद सूत्रों में मुख्यतया प्रायश्चित्त का अधिकार है / छद्मस्थतावश आत्मा भूल कर बैठती हैं, परंतु भवभीरु आत्मा उस भूल के सुधार के लिए सद्गुरु से प्रायश्चित्त ग्रहण कर अपनी आत्मशुद्धि करती है | ___ 1. निशीथ सूत्र : विशाख गणि द्वारा रचित इस सूत्र में ज्ञानाचार आदि पाँच आचारों में लगे प्रायश्चित्त का विधान है | निशीथ अर्थात् रात्रि का मध्य भाग / उस समय योग्य परिणत शिष्य को जो सूत्र पढ़ाया जाता है वह निशीथ सूत्र है। 2. महानिशीथ सूत्र : इस सूत्र में 8 अध्ययन हैं / निशीथ के साथ यह सूत्र पढाया जाता है / वि. सं. 510 में वल्लभीपुर में देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की निश्रा में सभी आगमों को पुस्तकारूढ़ करने का कार्य प्रारंभ हुआ / वि.सं. 510 में देवर्द्धिगणि का स्वर्गवास हो गया / उसके बाद कालक्रम से श्री हरिभद्रसूरिजी, सिद्धसेनसूरि, वृद्धवादी, यक्षसेन गणि, देवगुप्त, जिनदास गणि आदि ने मिलकर महानिशीथ का पुनरुद्धार किया / इस सूत्र में प्रायश्चित्त का विधान है / विधि-अविधि से लिये गये प्रायश्चित्त के लाभ अलाभ का सुंदर वर्णन है। 3) श्री दशाश्रुतस्कंध : इस पर भद्रबाहु स्वामी विरचित 2106 श्लोक प्रमाण नियुक्ति है / साधु व श्रावक के धर्म का वर्णन है / . 7) बृहत्कल्प : कल्प अर्थात् साधु-साध्वी का आचार ! उन आचारों में प्रायश्चित्त के कारण, प्रायश्चित्त का स्वरूप तथा प्रायश्चित्त की विधि का विस्तृत वर्णन है। मूल सूत्र का प्रमाण 473 श्लोक है / श्री भद्रबाहुस्वामीजी ने प्रत्याख्यानप्रवाद नामक पूर्व के तीसरे 'आचार' वस्तुरूप विभाग के 20वें प्राभृत में से उद्धार कर श्री बृहत्कल्प सूत्र की रचना की है / इसी पर स्वोपज्ञ नियुक्ति भी कर्मग्रंथ (भाग-1) 983 -