________________ हरिभद्रसूरिजी की 14000 श्लोक प्रमाण टीका है / इसमें जीव तत्व का विस्तृत वर्णन है। 4. प्रज्ञापना सूत्र : यह उपांग 7787 श्लोक प्रमाण है इस पर हरिभद्रसूरिजी की 3728 श्लोकप्रमाण टीका है / इस आगम के रचयिता श्यामाचार्य हैं / इसमें द्रव्यानुयोग के पदार्थों का वर्णन है | 5. सूर्य प्रज्ञप्ति : इस उपांग में 2496 श्लोक हैं, इस पर भद्रबाहुस्वामीजी की 9500 श्लोक प्रमाण टीका है / इस उपांग में सूर्य ग्रह आदि की गति का सूक्ष्म वर्णन है / 6. जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति : यह उपांग 4454 श्लोक प्रमाण है, इस पर श्री शांतिचंद्र गणि की 18000 श्लोक प्रमाण टीका है / इस उपांग में जंबूद्वीप के भरत आदि क्षेत्रों का तथा वर्षधर आदि पर्वतों का विस्तृत वर्णन है। ____7. चंद्र प्रज्ञप्ति : यह उपांग 2200 श्लोकं प्रमाण है / इस पर श्री मलयगिरि की 9500 श्लोक प्रमाण टीका है | इस उपांग में चंद्र की गति आदि का विस्तृत वर्णन है। 8 से 12 निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्षिता, पुष्प चूलिका, वृष्णिदशा : पाँच उपांगों का संयुक्त नाम निरयावलिका श्रुतस्कंध है / पहले विभाग में श्रेणिक पुत्र कालकुमार आदि 10 पुत्रों की नरकगति का वर्णन है / दूसरे कल्पावतंसिका विभाग में श्रेणिक के पौत्र पद्म, महापद्म आदि के स्वर्गगमन आदि का वर्णन है / पुष्पिता नामक तीसरे विभाग में चंद्र आदि 10 अध्ययन हैं, जिनमें चंद्र आदि का विस्तृत वर्णन है / पुष्पचूलिका नामक चौथे विभाग में श्रीदेवी आदि की उत्पत्ति व उसकी नाट्यविधि आदि का वर्णन है / वृष्णिदशा नामक पाँचवें विभाग में 12 अध्ययन है / इनमें कृष्ण के बड़े भाई बलदेव के निषध आदि 12 पुत्रों का वर्णन है / 10 पयन्ना : श्री तीर्थंकर परमात्मा द्वारा निर्दिष्ट अर्थ की देशना के अनुसार महाबुद्धिशाली मुनिवर जिसकी रचना करते हैं, उसे पयन्ना (प्रकीर्णक) कहते हैं / अथवा तीर्थंकर परमात्मा के औत्पातिकी आदि बुद्धिवाले शिष्य कर्मग्रंथ (भाग-1)) V94