________________ ह मतिज्ञान के अवांतर भेद) केवलज्ञान के कोई अवांतर भेद नहीं हैं, जबकि मतिज्ञान आदि चार क्षायोपशमिक भाववाले होने से उनके अनेक भेद है | सर्व प्रथम मतिज्ञान का वर्णन किया जाता है / मतिज्ञान के अट्ठाईस, तीनसौ छतीस और तीनसौ चालीस भेद भी है / मतिज्ञान के मुख्य 28 भेद : इन 28 भेदों को समझने के लिए सर्व प्रथम मुख्य चार भेद समझने चाहिए / मतिज्ञान के चार भेद : 1. अवग्रह : ज्ञान का विषय व्यंजन और अर्थ, ये दो होने से अवग्रह भी दो प्रकार का है अ) व्यंजनावग्रह : उपकरण-इन्द्रिय के साथ पदार्थ का संबंध होने पर जो अत्यंत ही अस्पष्ट बोध होता है, वह व्यंजनावग्रह कहलाता है / आ) अर्थावग्रह : इन्द्रिय और पदार्थ का संयोग पुष्ट होने पर 'यह कुछ है ! ऐसा जो विषय का सामान्य बोध होता है, उसे अर्थावग्रह कहते है / इन्द्रिय और पदार्थ का संबंध होने मात्र से ही विषय का बोध नहीं होता है / प्रारंभ में इन्द्रिय को सामान्य असर होती है, धीरे-धीरे असर बढ़ती जाती है, और उत्तरोत्तर असर बढ़ने पर 'यहाँ कुछ है' का ज्ञान होता है / जैसे सोए हुए व्यक्ति को नाम देकर चिल्लाने पर पहले सामान्य असर होता है, फिर दो-चार बार चिल्लाने पर जब वे शब्द पुदगल कान में भर जाते हैं / तब 'कहीं से आवाज आ रही है ऐसा अस्पष्ट बोध होता है / उसी को शास्त्रीय भाषा में 'अर्थावग्रह' कहते हैं / इस 'अर्थावग्रह' के पहले मन और चक्षु इन्द्रिय को छोड़कर शेष चार इन्द्रियों को व्यंजनावग्रह होता है। पदार्थ को प्राप्त कर-संबंध कर स्व विषय का बोध करने वाली इन्द्रिय कर्मग्रंथ (भाग-1) 176 -