________________ शासन में अंतिम चौदह पूर्वी स्थूलभद्रस्वामी हुए / देवाधिदेव महावीर प्रभु की वाणी को गणधर भगवंतों ने सूत्र रूप में गूंथा / शब्दस्थ बनी हुई परमात्मा की वह वाणी ही 'आगम' कहलाती है | वर्तमान काल में 12 वें अंग-दृष्टिवाद का विच्छेद हो चुका है / प्रभु महावीर की वाणी के संग्रह रूप वर्तमान में 45 आगम विद्यमान हैं / वे आगम अर्थ-गंभीर हैं, उन्हीं आगमों के गूढ़ रहस्यों को समझाने के लिए उन मूल आगमों पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी और टीकाओं की रचना की है | मूल आगम, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी और टीका ये पाँचों मिलकर पंचांगी कहलाते हैं | गणधर आदि महापुरुषों के द्वारा विरचित होने के कारण ये सब आगम प्रमाणभूत हैं / इन आगमों को पढ़ने का मूलभूत अधिकार उन उन आगमों के योगोद्वहन करने वाले श्रमण भगवंतों को है / साध्वीजी भगवंतों को दश वैकालिक, उत्तराध्ययन सूत्र और आचारांग सूत्र के ही योगोद्वहन होने से उन्हीं सूत्रों को पढने का अधिकार है / गुरुमुख से इन आगमों को सुनने-समझने का अधिकार श्रावकश्राविका वर्ग को भी है। 45 आगमों का संक्षिप्त परिचय इन आगमों को छह भागों में बांटा गया है (1) 11 अंग (2) 12 उपांग (3) 6 छेद सूत्र (4) चार मूल (5) 10 पयन्ना (6) दो चूलिका / ग्यारह अंग 1) आचारांग सूत्र : इस आगम में साधु के आचार मार्ग का विस्तार से वर्णन किया गया है / साधु के आहार-विहार-निहार-भाषा-शय्या-वस्त्र, सुखदुःख आदि का वर्णन है / इसके साथ ही भगवान महावीर की घोरातिघोर साधना का वर्णन है / प्राचीन समय में इस आगम में 18,000 पद थे / वर्तमान कर्मग्रंथ (भाग-1) 191