________________ * अवधिज्ञान चारों गति के जीवों को हो सकता है, जब कि मनःपर्यवज्ञान सिर्फ अप्रमत्त संयत मुनियों को ही होता है / * अवधिज्ञान परभव में भी साथ में चल सकता है, जब कि मनः पर्यवज्ञान एक भव में ही रहता है / * मिथ्यात्व का उदय होने पर अवधिज्ञान, विभंगज्ञान में बदल जाता है, जबकि मनःपर्यवज्ञान कभी बदलता नहीं है / मनोद्रव्य रूपी होने से विशुद्ध अवधिज्ञान से मन के विचारों को भी जाना जा सकता है | भगवान द्रव्य मन से जो जवाब देते हैं, उन्हें अनुत्तर विमानवासी देव अवधिज्ञान से जान सकते हैं। 5) केवलज्ञान : जगत् में रहे सभी ज्ञेय रूपी-अरूपी पदार्थों के भूत, भविष्य और वर्तमान की समस्त पर्यायों को एक साथ में जिस ज्ञान द्वारा जाना जाता है, उसे केवलज्ञान कहते हैं / इस ज्ञान में इन्द्रियों व मन की अपेक्षा नहीं होती है, अर्थात् यह आत्म-प्रत्यक्ष ज्ञान है / पाँच ज्ञान में क्रम के हेतु मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान इस प्रकार ज्ञान के जो पाँच भेद बतलाए गए हैं, उसके क्रम में निम्न कारण हैं | __मतिज्ञान व श्रुतज्ञान परोक्षज्ञान हैं, जबकि अवधिज्ञान आदि तीन प्रत्यक्ष-ज्ञान हैं | परोक्ष से प्रत्यक्ष ज्ञान श्रेष्ठ होने से पहले परोक्षज्ञान बतलाकर फिर प्रत्यक्ष ज्ञान का वर्णन किया गया है | __ मतिज्ञान और श्रुतज्ञान के स्वामी एक ही हैं / जिसे मतिज्ञान होता है, उसे श्रुतज्ञान और जिसे श्रुतज्ञान होता है, उसे मतिज्ञान अवश्य होता है। * मति व श्रुत दोनों का उत्कृष्ट स्थिति काल 66 सागरोपम है / * दोनों ज्ञान में इन्द्रिय व मन की अपेक्षा होने से कारण की समानता * दोनों ज्ञान सर्व द्रव्य-विषयक होने से विषय की समानता है | कर्मग्रंथ (भाग-1)) 174