________________ जाता है / ईहा का काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है | ईहा के कुल छह भेद हैं 1) स्पर्शनेन्द्रियजन्य ईहा 2) रसनेन्द्रियजन्य ईहा 3) घ्राणेन्द्रियजन्य ईहा 4) चक्षुरिन्द्रियजन्य ईहा 5) श्रोत्रेन्द्रियजन्य ईहा 6) मनोजन्य ईहा / 3. अवाय : ईहा के द्वारा वस्तु का निर्णयाभिमुख बोध होने के बाद जो निश्चयात्मक बोध होता है, उसे अवाय कहते हैं | जैसे 'पहले जो स्पर्श हुआ था, वह रस्सी का ही था, सर्प का नहीं / ' इस प्रकार जो निश्चय होता है, वह अवाय है / अवाय का काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है अवाय के छह भेद हैं__1) स्पर्शनेन्द्रिय अवाय 2) रसनेन्द्रिय अवाय 3) घ्राणेन्द्रिय अवाय 4) चक्षुरिन्द्रिय अवाय 5) श्रोत्रेन्द्रिय अवाय 6) मनोजन्य अवाय / 4. धारणा : अवाय के द्वारा जाने गए पदार्थ का भविष्य में विस्मरण न हो, ऐसा जो दृढ़ ज्ञान होता है, उसे धारणा कहा जाता है / अपेक्षा से इसके तीन भेद हैं 1) अविच्युति धारणा : अवाय से निर्णीत वस्तु का उपयोग अन्तर्मुहूर्त काल तक वैसा ही बना रहे उसे अविच्युति धारणा कहते हैं, इसका काल अन्तर्मुहूर्त जितना है। 2) वासना धारणा : अविच्युति से आत्मा में उस वस्तु के संस्कार पड़ते हैं, उस संस्कार को वासना कहते हैं / इसका काल संख्यात-असंख्यात वर्ष जितना है / 3) स्मृति धारणा : आत्मा में दृढ बने संस्कार, जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से असंख्य वर्ष बीतने पर भी 'यह वही वस्तु है जो मैंने पहले देखी थी / ' इस प्रकार के ज्ञान को स्मृति कहा जाता है | जाति स्मरण का समावेश इसी 'स्मृति में होता है | ___ पाँच इन्द्रियों व मन की अपेक्षा धारणा के भी छह भेद हैं | 1) स्पर्शनेन्द्रिय धारणा 2) रसनेन्द्रिय धारणा 3) घ्राणेन्द्रिय धारणा 4) चक्षुरिन्द्रिय धारणा 5) श्रोत्रेन्द्रिय धारणा 6) मनोजन्य धारणा | कर्मग्रंथ (भाग-1) ENT 79