________________ इस प्रकार मतिज्ञान के कुल 28 भेद हुए | व्यंजनावग्रह के 4 भेद अवग्रह के 6 भेद ईहा के 6 भेद अवाय के 6 भेद धारणा के 6 भेद कुल 28 भेद मतिज्ञान के 336 भेद : क्षयोपशम की विचित्रता और विषय की विविधता के कारण सभी को सदा काल एक समान मतिज्ञान नहीं होता है / मतिज्ञान के व्यंजनावग्रह आदि 28 भेद में प्रत्येक के बहु, अल्प आदि 12-12 भेद होते हैं / अतः 28 x 12 = 336 भेद हुए। 1-2 बहुग्राही-अबहुग्राही (अल्पग्राही)-बहु अर्थात् अनेक और अबहु अर्थात् अल्प | उदा. अनेक वाद्ययंत्र एक साथ बज रहे हों, तब तीव्र बुद्धिशाली व्यक्ति अनेक वाद्ययंत्रों के शब्द समूह में से अलग अलग वाद्ययंत्र के शब्द को जान लेता है / जैसे 'यह वीणा की आवाज है' 'यह तबले की आवाज है।' मंदबुद्धिवाला मनुष्य अनेक वाद्य यंत्रों के शब्द समूह को अलग-अलग ग्रहण नहीं कर पाता है, उसे अबहुग्राही कहते हैं / ____ 3-4 बहुविध-अबहुविध-बहुविध अर्थात् अनेक प्रकार से और अबहुविध अर्थात् अल्प प्रकार से / जैसे 1) तीव्र बुद्धिवाला मनुष्य अनेक वाद्ययंत्रों के शब्द समूह में से अलग अलग शब्दों को अनेक गुणयुक्त जान सकता है / जैसे...'यह शंख की आवाज किसी युवा पुरुष से जन्य है / ' 2) मंद बुद्धिवाला मनुष्य अनेक वाद्य यंत्रों के शब्दसमूह में अलगअलग शब्दों को अनेक गुणयुक्त नहीं जानता है, उसे अबहुविध मतिज्ञान कहा जाता है। 5-6 क्षिपग्राही-अक्षिप्रनाही-क्षिप्र अर्थात् जल्दी और अक्षिप्र अर्थात् विलंब से / उदा. वाद्ययंत्र की आवाज आदि को जल्दी पहिचान लेते हैं उसे कर्मग्रंथ (भाग-1) 808