________________ पदार्थों का जो बोध होता है, उसे अक्षर श्रुत कहते हैं / इस अक्षर श्रुत के तीन भेद हैं अ) संज्ञाक्षर : 18 प्रकार की लिपि (अक्षरों) को संज्ञाक्षर कहा जाता है / आ) व्यंजनाक्षर : 'अ से ह' तक के अक्षरों के उच्चारण से जो ज्ञान होता है, उसे व्यंजनाक्षर कहते हैं | इ) लब्ध्यक्षर : शब्द अथवा अक्षर को पढ़ने-सुनने से जो बोध होता है, उस बोध में हेतुभूत क्षयोपशम को लब्ध्यक्षर कहते हैं / संज्ञाक्षर और व्यंजनाक्षर दोनों द्रव्य श्रुत हैं और लब्ध्यक्षर भाव श्रुत है / द्रव्य श्रुत अज्ञान स्वरूप होने पर भी भाव श्रुत का कारण होने से उसे श्रुतज्ञान कहा गया है / प्रश्न : अभिलाप्य-अनभिलाप्य भाव किसे कहते हैं ? उत्तर : शास्त्र में दो प्रकार के भाव बतलाए गए हैं / जिन भावों को शब्दों द्वारा कहा जा सकता हो, उसे अभिलाप्य भाव कहते हैं और जिन्हें शब्दों में न कहा जा सके, उसे अनमिलाप्य भाव कहते हैं / अभिलाप्य भाव से अनभिलाप्य भाव अनंत गुणे हैं | गणधर भगवंत अभिलाप्य भावों का अनंतवाँ भाग ही चौदह पूर्व के रूप में रचते हैं / 3) संज्ञी श्रुत : मनवाले पंचेन्द्रिय जीवों को संज्ञी कहते हैं | संज्ञी जीवों के ज्ञान को संज्ञी श्रुत कहा जाता हैं | संज्ञा के तीन भेद हैं क. दीर्घकालिकी संज्ञा : दीर्घकाल तक विचार करने की शक्ति / 'मैंने अमुक कार्य किया, अमुक कार्य करूंगा, अमुक कार्य कर रहा हूँ' इस प्रकार भूत, भविष्य और वर्तमान का विचार करने की शक्ति को दीर्घकालिकी संज्ञा कहते हैं / देव, नारक व गर्भज तिर्यंच मनुष्य को यह संज्ञा होती है | ख. हेतु-वादोपदेशिकी : अपने शरीर के रक्षण के लिए इष्ट में प्रवृत्ति और अनिष्ट से निवृत्ति रूप वर्तमान काल का विचार करने की शक्ति को हेतु वादोपदेशिकी संज्ञा कहते हैं / यह संज्ञा बेइन्द्रिय आदि असंज्ञी जीवों को होती है। कर्मग्रंथ (भाग-1) 084