________________ श्रतज्ञान के 14 भेद) ...................... अक्खर-सन्नी-सम्म, साइअं खलु सपज्जवसिअं च / गमियं अंग-पविलु, सत्तवि ए ए सपडिवक्खा ||6|| शब्दार्थ ___ अक्खर-अक्षर, सन्नी-संज्ञी, सम्म-सम्यग् , साइअंसादिक, खलु-वास्तव में, सपज्जवसि=अंत सहित, गमिअंगमिक, अंग पविट्ठ-अंग प्रविष्ट, सत्तवि-सातों भी , एए-ये, सपडिवक्खा -विरुद्ध सहित / गाथार्थ अक्षर, संज्ञी, सम्यक्, सादि, सपर्यवसित, गमिक और अंग-प्रविष्ट तथा इन सात के साथ विरोधी अर्थवाले सात नाम जोड़ने से श्रुतज्ञान के चौदह भेद होते हैं। विवेचन मतिज्ञान के बाद अब श्रुतज्ञान का वर्णन करते हैं | श्रुतज्ञान के 14 और 20 भेद भी हैं / प्रस्तुत गाथा में मतिज्ञान के 14 भेदों का नाम निर्देश किया 14 भेद : 1) अक्षर श्रुत 2) अनक्षर श्रुत 3) संज्ञी श्रुत 4) असंज्ञी श्रुत 5) सम्यक् श्रुत 6) मिथ्या श्रुत 7) सादि श्रुत 8) अनादि श्रुत 9) सपर्यवसित श्रुत 10) अपर्यवसित श्रुत 11) गमिक श्रुत 12) अगमिक श्रुत 13) अंग प्रविष्ट श्रुत 14) अंग बाह्य श्रुत / 1) यद्यपि श्रुतज्ञान के उपर्युक्त 14 भेदों का समावेश अक्षर श्रुत और अनक्षर श्रुत में हो जाता है, फिर भी मंद बुद्धिवाले जिज्ञासु की अपेक्षा श्रुतज्ञान के 14 भेद किए गए है। 1) अक्षर श्रुत : अक्षरों से अभिलाप्य (वचन द्वारा कहे जा सके) ऐसे कर्मग्रंथ (भाग-1))