________________ मतिज्ञान के शेषभेद व तज्ञान) अत्युग्गह ईहावाय, धारणा करण माणसेहिं छहा / इय अहवीसभेयं, चउदसहा वीसहा व सुअं / / 5 / / शब्दार्थ अत्युग्गह-अर्थावग्रह, ईहा-ईहा , अवाय-अपाय, धारणा धारणा, करण-इन्द्रियाँ, माणसेहि-मन द्वारा, छहा-छ प्रकार से, इय-इस प्रकार, अट्ठवीस भेयं अट्ठाईस भेद, चउदसहा-चौदह प्रकार, वीसहा=बीस प्रकार, व-अथवा , सुअं-श्रुतज्ञान / गाथार्थ : इन्द्रिय और मन द्वारा अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के छह छह प्रकार हैं / इस प्रकार मतिज्ञान के कुल 28 भेद हैं | श्रुतज्ञान के चौदह अथवा बीस भेद हैं / विवेचन : इन्द्रिय द्वारा पदार्थ का जो अस्पष्ट बोध होता है, उसे 'अर्थावग्रह' कहते हैं / जैसे 'कुछ दिखाई देता है इस प्रकार का जो अस्पष्ट बोध होता है, वह अर्थावग्रह है / मन और 5 इन्द्रियों से होने के कारण अर्थावग्रह छह प्रकार का है / 1) स्पर्शनेन्द्रिय अर्थावग्रह 2) रसनेन्द्रिय अर्थावग्रह 3) घ्राणेन्द्रिय अर्थावग्रह 4) चक्षुरिन्द्रिय अर्थावग्रह 5) श्रोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रह 6) मनोजन्य अर्थावग्रह 2. ईहा : अर्थावग्रह के द्वारा ग्रहण किए गए सामान्य विषय को विशेष रूप से निश्चय करने के लिए जो विचारणा की जाती है उसे ईहा कहते है / ईहा द्वारा अन्वय धर्म की घटना और व्यतिरेक धर्म के निराकरण द्वारा वस्तु का निश्चय किया जाता है | जैसे 'यह रस्सी है या सर्प ?' इस प्रकार का संशय उत्पन्न होने पर दोनों के गुण-धर्म के बारे में विचार किया जाता है / जैसेयह रस्सी का स्पर्श होना चाहिए, क्योंकि यदि सर्प का स्पर्श होता तो आघात लगने पर फुत्कार किए बिना नहीं रहता, इत्यादि विचारणा को ईहा कहा कर्मग्रंथ (भाग-1) TO 78