________________ को प्राप्यकारी इन्द्रिय कहते हैं तथा पदार्थ के साथ संबंध किए बिना स्व विषय का बोध करनेवाली इन्द्रिय को अप्राप्यकारी कहते हैं / मन और चक्षु अप्राप्यकारी इन्द्रिय हैं, क्योंकि मन का विषय चिंतनमनन का है | घटादि पदार्थों का विचार करते समय मन के साथ घटादि पदार्थ का संयोग नहीं होता है, उसी प्रकार आँख सैकड़ों मील दूर रही वस्तु को देखती है, उस समय उस पदार्थ का आँख के साथ कोई संयोग संबंध नहीं होता है। पदार्थ के साथ संयोग हुए बिना ही स्व विषय का बोध हो जाने से अप्राप्यकारी इन्द्रियों को व्यंजनावग्रह नहीं होता है | स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय , घ्राणेन्द्रिय और कर्णेन्द्रिय के व्यंजनावग्रह होता है, क्योंकि शब्द पुद्गल कान का स्पर्श करते हैं, तभी सुनाई देता है, खाने के पदार्थ जीभ का स्पर्श करते हैं, तभी स्वाद का बोध होता है, फूल आदि की सुगंध के परमाणु नाक का स्पर्श करते हैं, तभी सुगंध आदि का पता चलता है तथा पानी आदि का स्पर्श स्पर्शनेन्द्रिय को होता है, तभी उसकी शीतलता आदि का पता चलता है / इस प्रकार व्यंजनावग्रह के चार भेद हुए | 1) स्पर्शनेन्द्रिय व्यंजनावग्रह 2) रसनेन्द्रिय व्यंजनावग्रह 3) घ्राणेन्द्रिय व्यंजनावग्रह और 4) श्रोत्रेन्द्रिय व्यंजनावग्रह / पुरुषार्थ सूर्य प्रकाश देता है, परंतु उस प्रकाश का सही उपयोग करने के लिए पुरुषार्थ तो हमें ही करना पडता है, सद्गुरु हमें सही दिशा का बोध देते हैं, परंतु उस दिशा की ओर चलने का पुरुषार्थ तो .. हमें स्वयं ही करना पड़ता है / कर्मग्रंथ (भाग-1)= = m RATORE