________________ आत्मा देह, इन्द्रिय, मन आदि से भिन्न स्वतंत्र पदार्थ है | कई अज्ञानी लोग देह को ही आत्मा मान लेते हैं / परन्तु देह तो भोग्य है और आत्मा भोक्ता है / * हम देह के लिए 'मेरा देह' शब्द का प्रयोग करते है / कोई भी व्यक्ति 'मैं देह' ऐसा शब्दप्रयोग नहीं करता है | _ 'मेरा' शब्द संबंध वाचक है / जब किसी वस्तु के साथ अपना स्वामित्वसंबंध होता है, तब उस वस्तु के लिए 'मेरा / मेरी' शब्द का प्रयोग करते हैं / मेरा घर, मेरा पंखा, मेरी घड़ी, मेरी पेन / 'मेरा घर' जब हम इस शब्द का प्रयोग करते हैं, तब यह बात स्पष्ट होती है कि 'मैं' और 'घर' दोनों भिन्न हैं / बस, इसी प्रकार जब हम अपने शरीर के लिए 'मेरा शरीर' शब्द का प्रयोग करते हैं, तब यह बात स्पष्ट हो जाती है कि 'मैं' और 'शरीर' भिन्न हैं / शरीर के साथ स्वामित्व का संबंध होने के कारण ही हम 'मेरा शरीर' शब्द का प्रयोग करते हैं / इससे स्पष्ट है कि 'मैं' शरीर से भिन्न हूँ और वही 'मैं' आत्मा है | विज्ञान भी इस बात को सिद्ध कर चुका है कि अपना शरीर परिवर्तनशील है / कुछ ही दिनों में अपने शरीर की चमड़ी बदलती रहती है / * बाल्यवय को पूर्ण कर जब व्यक्ति युवावस्था प्राप्त करता है, तब उसका शरीर आमूलचूल बदला हुआ होता है, फिर भी आश्चर्य है कि बालवय के शरीर के साथ बनी घटनाएँ हमें युवावस्था में भी याद रहती हैं, इसका कारण कौन ? इसका कारण आत्मा ही है / एक ही जीवन में अपने शरीर की अवस्थाएँ बदलती रहती हैं, जब कि आत्मा तो वह का वह होती है / इसी कारण बचपन में बनी हुई घटनाएँ हमें यौवनवय में और यौवनवय में बनी हुई घटनाएँ वृद्धावस्था में भी याद रह जाती है / और वह याद रखने वाला जो तत्त्व है-वही आत्मा है। * जब हम कहते हैं कि 'अमुक व्यक्ति मर गया'-वह न खाता है, न पीता है, न रोता है, न जागता है, न बैठता है, न चलता है / उसके शरीर की समस्त क्रियाएँ बंद हो गईं। इसका अर्थ यही है कि उसके देह में से, जो कर्मग्रंथ (भाग-1) 44