________________ का कारण सोने का मूलभूत स्वभाव ही है / यदि सोने का वह स्वभाव नहीं होता तो हजार प्रयत्नों के बाद भी उसमें वह चमक नहीं आती | बस, इसी प्रकार आत्मा का मूलभूत स्वभाव शुद्ध होने के कारण ही प्रयत्न विशेष के द्वारा उस स्वभाव को प्रगट किया जा सकता है | आत्मा परिणामी नित्य है ___ परिणामी अर्थात् परिवर्तनशील | बदलने वाला तथा नित्य अर्थात् जो हमेशा रहता हो / आत्मा का अस्तित्व अनादिकाल से है और अनंत काल तक रहने वाला है। आत्मा का अनादि-अनंत अस्तित्व होते हुए भी उसके पर्याय बदलते रहते हैं। जिस प्रकार सोने के मुकुट को तोड़कर उसका हार बनाने पर मुकुट का नाश होता है और हार की उत्पत्ति होती है, परंतु उन दोनों अवस्थाओं में भी स्वर्ण द्रव्य तो वैसे का वैसा ही बना रहता है / मुकुट को तोड़ने पर मुकुट का नाश होता है-स्वर्ण का नहीं / बस, इसी प्रकार जब आत्मा एक देह का त्याग कर (जिसे हम अपनी भाषा में मृत्यु कहते हैं) अन्य देह को धारण करती है, तब देह का विनाश होता है, आत्मा का नहीं | कर्म की पराधीनता | परतंत्रता के कारण आत्मा को जन्म धारण करना पड़ता है और मृत्यु की वेदना सहन करनी पड़ती है, आत्मा यदि कर्म के बंधन से मुक्त हो जाय तो उसे किसी भी प्रकार की जन्म-मरण की पीड़ा सहन करनी नहीं पड़ेगी / अतः जन्म-मरण की पीड़ा से बचने के लिए कर्म के बंधन को तोड़ने के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिए / जब तक आत्मा कर्म से सर्वथा मुक्त नहीं बनती है, तब तक उसे एक गति से दूसरी गति में, एक देह से दूसरे देह में जन्म धारण करना पड़ता आज देश-विदेश में जातिस्मरण ज्ञान की अनेक घटनाएँ हमें जानने | पढ़ने को मिलती हैं, जो आत्मा की नित्यता को प्रत्यक्ष सिद्ध करती हैं | कर्मग्रंथ (भाग-1) 51