________________ * क्रोध की भाँति मान भी अत्यंत खतरनाक है | उससे भी भयंकर पापकर्म का बंध होता है / * हरिकेशी ने पूर्व भव में जाति का अभिमान किया तो उन्हें चांडाल कुल में जन्म लेना पड़ा। * विद्या के मद के परिणामस्वरूप स्थूलभद्र महामुनि अर्थ से शेष चार पूर्व का ज्ञान प्राप्त न कर सके / * तप के अभिमान के कारण कुरगडुमुनि को तप में भयंकर अंतराय पैदा हुआ / * संसार में परिभ्रमण कराने वाले मान से सदैव दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए। * माया तो पाप की जननी है | * माया के फलस्वरूप मल्लिनाथ प्रभु स्त्री रूप में पैदा हुए थे / * मायापूर्वक दीर्घतप करने पर भी रुक्मि साध्वी शुद्धि प्राप्त न कर सकी / * लोभ सर्वगुणों का नाश करने वाला है। लोभ के पाप के कारण मम्मण सेठ मरकर 7 वीं नरक में चला गया / अपने निजी स्वार्थ के लिए जब इन कषायों का उपयोग किया जाता है तो वे अप्रशस्त कषाय कहलाते हैं और उनसे अशुभ कर्म का बंध होता है, परंतु धर्म, शासन व व्रत की रक्षा के लिए जब इन कषायों का सेवन किया जाता है तो उससे पुण्य कर्म का बंध होता है / अप्रशस्त कषाय सर्वथा त्याज्य हैं, क्योंकि वे एकांतः आत्मा का अहित करने वाले हैं। 4. योग-मन, वचन और काया के शुभ-अशुभ योगों से आत्मा कर्म का बंध करती है / मन में शुभ चिंतन करने से, सत्य, प्रिय व हितकारी वचन बोलने से और परोपकार की प्रवृत्ति करने से शुभ कर्म का बंध होता है, जब कि दूसरों के अहित का चिंतन करने से , असत्य व अप्रिय वचन बोलने से और दूसरों के लिए अहितकर प्रवृत्ति करने से अशुभ कर्म का बंध होता है / (कर्मग्रंथ (भाग-1) 65