________________ * तंदुलिक मत्स्य मात्र मानसिक विचारों के पाप से मरकर 7वीं नरक में चला जाता है। * प्रसन्नचंद्र राजर्षि ने मात्र विचारों के पाप से ही 7 वीं नरक के योग्य कर्मों का संचय कर लिया था / .सुनंदा के रूप में पागल बना रूपसेन, सुनंदा को तो प्राप्त नहीं कर सका, परंतु उसी को पाने के ध्यान के फलस्वरूप उसे 7-7 भवों तक मौत का शिकार बनना पड़ा था / कुछ भी लेना-देना नहीं होने पर भी हम निरर्थक अशुभ विचारों के द्वारा भयंकर पापकर्मों का बंध कर लेते हैं | पाप से बचना हो तो अशुभ विचारों को रोकना चाहिए / अशुभ विचारों को रोके बिना शुभ भाव में स्थिरता संभव नहीं है। वचनयोग से कभी खराब वचन नहीं बोलना चाहिए / * भूख से परेशान बेटे ने आवेश में आकर माँ को कहा, 'तूं कहाँ शूली पर चढ़ने गई थी?' __ बेटे के आक्रोशजनक शब्दों को सुनकर आवेश में आई माँ ने कहा, 'तेरे हाथ क्या कट गए थे ?' बस , आक्रोश से बोले गए इन शब्दों के फलस्वरूप दूसरे भव में माँ . के हाथ कट गए और बेटे को शूली पर चढ़ना पड़ा / अतः बोलते समय खूब सावधानी रखनी चाहिए / प्रमाद व हास्य से बोले गए शब्दों का भयंकर विपाक जीवात्मा को सहन करना पड़ता है। * मेघकुमार ने हाथी के भव में जीव दया का पालन किया तो उसके परिणामस्वरूप वह मरकर श्रेणिक पुत्र राजपुत्र बना | अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करने से, टी.वी. सिनेमा आदि देखने, चलते-चलते निष्कारण वृक्ष के पत्ते आदि तोड़ने से , अश्लील व फिल्मी गंदे / गीतों का श्रवण करने से आत्मा अशुभ कर्मों का बंध करती है / यदि अशुभ कर्म के बंध से बचना हो तो इन सब अशुभ प्रवृत्तियों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए / कर्मग्रंथ (भाग-1)) 166