________________ जीव और कर्म का संबंध 1) व्यक्ति रूप से जीव के साथ कर्म का संबंध सादि सांत है / 2) प्रवाह की अपेक्षा जीव के साथ कर्म का संबंध सादि-सांत और सादि-अनंत है। 1) सादि सांत : जीव प्रति समय नए-नए कर्म का बंध करता रहता है / समय व्यतीत होने पर वे कर्म उदय में आते हैं और अपना फल देकर आत्मा से अलग हो जाते हैं | जीव ने जब कर्म का बंध किया, तब व्यक्ति रूप से उस कर्मबंध का प्रारंभ हआ, अतः उसे सादि कहा जाता है और फल देकर वह कर्म अलग हो गया अतः उसे 'सांत' कहा जाता है / 2) अनादि-सांत : भव्यात्मा को प्रवाह की अपेक्षा कर्म का बंध अनादिसांत होता है | भव्य आत्मा को भी प्रवाह की अपेक्षा कर्म का संबंध अनादिकाल से हैं, परंतु मोक्ष में जाने पर उस कर्म के संबंध का अंत आ जाता है अतः भव्य जीव को कर्म का संबंध अनादि-सांत होता है / 3) अनादि-अनंत : अभव्य जीव को कर्म-संबंध प्रवाह की अपेक्षा अनादि काल से चला आ रहा है / अभव्य आत्मा का कभी मोक्ष नहीं होने के कारण वह संबंध अनादि-अनंत होता है | प्रश्न : आत्मा अमूर्त है और कर्म मूर्त है तो मूर्त कर्म की अमूर्त आत्मा पर असर कैसे हो सकेगी ? उत्तर : ज्ञान अमूर्त होने पर भी विष और मदिरा पान आदि करने से ज्ञान-शक्ति का ह्रास प्रत्यक्ष देखा जाता है तथा ब्राह्मी, बादाम आदि पौष्टिक वस्तुओं का उपयोग करने से ज्ञान शक्ति की अभिवृद्धि प्रत्यक्ष देखी जाती है / बस, इसी प्रकार आत्मा अमूर्त होने पर भी मूर्त ऐसे कर्म का प्रभाव आत्मा पर अवश्य पड़ता है। कर्म का वियोग सोने की खान में रहे मलिन सोने में मिट्टी का संयोग अनादिकाल से Sta Mor: (कर्मग्रंथ (भाग-1) Page