________________ के झटके से वह नया मकान धराशायी हो गया / कांति के सारे स्वप्न मिट्टी में मिल गए / उसके दुःख का पार न था, फिर भी जीवन बच जाने का उसे आनंद भी था / * चिराग सबसे होशियार लड़का था, परंतु उसके देह में भयंकर रोग पैदा हो गया / चिराग को बचाने के लिए पिता ने भरसक प्रयत्न किये / पर बम्बई के बड़े-बड़े डॉक्टर भी चिराग को बचा नहीं पाए और विकसित कली की भाँति खिलती जवानी में ही चिराग का जीवन-दीप सदा के लिए बुझ गया | उपर्युक्त और इनके जैसी अनेक घटनाओं का विहगावलोकन करने पर एक सीधा-साधा प्रश्न खड़ा होता है-इन समस्त घटनाओं का नियंता कौन लाख-लाख प्रयत्न करने के बाद भी व्यक्ति निष्फल क्यों हो जाता है ? शायद कोई कह सकता है-'इन सब घटनाओं का प्रेरक बल ईश्वर नाम का तत्त्व है / ' परंतु विश्व के रंगमंच पर बनने वाली इन विचित्र घटनाओं के प्रेरक बल के रूप में किसी ईश्वर विशेष को मानना युक्तिसंगत नहीं है / किसी नव विवाहिता कन्या के सौभाग्य सिंदूर को अचानक ही लूटने का काम क्या दयालु ईश्वर कर सकता है ? कदापि नहीं / जो ईश्वर निरंजन-निराकार-दयालु और सर्वशक्तिमान कहलाता हैवह ईश्वर संसारी जीवों को इस प्रकार की विविध पीड़ाएँ क्यों देगा ? वास्तव में देखा जाए तो संसार में रहे हुए जीवों की विचित्रताओं का कारण उनका अपना-अपना 'कर्म' ही है / इस विराट् विश्व में पदगल-स्कंधों की मुख्य आठ वर्गणाएँ अनंत प्रमाण में रही हुई हैं / पुद्गल द्रव्य की सबसे छोटी इकाई को परमाणु कहते हैं | इस जगत् में स्वतंत्र रूप से 1-1 परमाणु भी अनंत रहे हैं / उसके बाद दो-दो परमाणुओं के संयोग से बने हुए ढ्यणुक, तीन-तीन परमाणुओं के संयोग से बने हुए त्र्यणुक, चार-चार परमाणुओं के संयोग से बने हुए स्कंध भी अनंत हैं / इसी कर्मग्रंथ (भाग-1)