________________ आत्मा का स्वरूप और लक्षण किसी भी वस्तु की पहचान जिससे होती है उसे लक्षण कहते है | तत्त्वार्थ सूत्र में आत्मा का लक्षण बताते हुए कहा है-'उपयोगो लक्षणम्' अर्थात् उपयोग यह आत्मा का लक्षण है / यह उपयोग दो प्रकार का होता है 1) सामान्य उपयोग 2) विशेष उपयोग | सामान्य उपयोग को दर्शनोपयोग कहते हैं / विशेष उपयोग को ज्ञानोपयोग कहते हैं। / वस्तु का सामान्य-बोध दर्शन कहलाता है / 0 वस्तु का विशेष-बोध, ज्ञान कहलाता है | आत्मा में ही ज्ञान शक्ति रही हुई है / जड़ पदार्थ को कभी भी ज्ञान नहीं होता है / प्रेम, स्नेह, राग-द्वेष आदि आत्मा ही कर सकती है / सुखदुःख का संवेदन आत्मा में ही होता है-जड़-पदार्थों में नहीं / हर आत्मा में कुछ-न-कुछ ज्ञान/संवेदन शक्ति अवश्य होती है / यदि आत्मा में ज्ञान/संवेदन का सर्वथा अभाव हो जाय तो आत्मा और जड़ पदार्थ में कोई अंतर ही प्रतीत नहीं होगा। हमारे चित्त का उपयोग / ध्यान जिस ओर होता है, उसके सिवाय के अनेक पदार्थ हमारे सामने होने पर भी हमें उन पदार्थों का बोध नहीं होता है। जिस प्रकार टोर्च Torch का प्रकाश एक ही दिशा | क्षेत्र में केन्द्रित होता है, उसके आसपास के क्षेत्र में अंधेरा होता है, उसी प्रकार हमारे चित्त का उपयोग जिस पदार्थ विषयक होता है, उसी का हमें बोध होता है, उसके सिवाय के पदार्थ का हमें ज्ञान नहीं हो पाता है | ज्ञान आत्मा का स्वरूप है / जहाँ जहाँ ज्ञान है, वहाँ वहाँ आत्मा है / जहाँ आत्मा है, वहाँ कुछ-न-कुछ ज्ञान होगा ही / प्रत्येक प्राणी चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी या सूक्ष्म कीट-पंतग या वनस्पति, उन सब में कुछ-न-कुछ ज्ञान अवश्य रहा होता है। मनुष्य, पशु-पक्षी आदि में तो ज्ञान के संवेदनादि का हमें प्रत्यक्ष (कर्मग्रंथ (भाग-1)) 048 PORNO