________________ 'आत्मा' नामक तत्त्व था, वह चला गया / जब तक उस देह में आत्मा थी, तभी तक वह देह खाता था, पीता था, चलता था' परन्तु उस देह में से आत्मा निकल जाने के बाद वे सब क्रियाएँ बंद हो गईं / इसका अर्थ है कि आत्मा इस देह से भिन्न है और उस आत्मा की शक्ति के कारण ही यह शरीर और ये इन्द्रियाँ काम कर सकती हैं | * लोक भाषा में हम कहते हैं कि मैं आँख से देखता हूँ, कान से सुनता हूँ, जीभ से बोलता हूँ, नाक से सूंघता हूँ, परन्तु सचमुच तो हम आँख से नहीं, किंतु आत्मा की शक्ति से ही देख सकते हैं, सुन सकते हैं और सूंघ सकते है / इससे स्पष्ट है कि आत्मा, शरीर से भिन्न है। * जब तक मनुष्य जीवित होता है अर्थात् उसके शरीर में आत्मा होती है, तब तक इस शरीर के पास हम बैठ सकते हैं, परंतु जब आत्मा, इस शरीर को छोड़कर चली जाती है, अर्थात् मनुष्य की मृत्यु हो जाती है, उसके बाद उसके शरीर में दुर्गंध पैदा होने लगती है और उस मुर्दे शरीर के पास कोई बैठने के लिए तैयार नहीं रहता है / इससे स्पष्ट है कि इस शरीर को स्वस्थ, गतिशील और अत्यंत दुर्गंध से रहित रखने में भी आत्मा ही कारण है और वह आत्मा इस शरीर से भिन्न है / * जगत् में जो चीज विद्यमान हो उसी का किसी स्थल विशेष की अपेक्षा से निषेध किया जाता है / 'मृत देह में आत्मा नहीं है। इस प्रकार के वाक्य से सिद्ध होता है कि अन्यत्र आत्मा है / / * जंगल आदि में सर्प होने पर ही 'घर में साँप नहीं है' इस प्रकार का निषेध कर सकते हैं / यदि जगत् में सर्प का अस्तित्व ही न हो तो घर आदि में उसका निषेध नहीं किया जाता | गधे के सींग का अभाव सर्वत्र होने से कोई यह नहीं कहता है कि 'मेरे गधे के सींग नहीं हैं।' * अब कोई प्रश्न कर सकता है कि 'आत्मा' नाम की कोई वस्तु हो तो वह दिखाई क्यों नहीं देती है ? इसका जवाब यही है कि आत्मा अतीन्द्रिय पदार्थ होने से उसे किसी भी इन्द्रिय के द्वारा जाना या देखा नहीं जा सकता है | * एक बार डॉ. राधाकृष्णन् आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में अध्यात्मवाद (कर्मग्रंथ (भाग-1) (45