________________ जगत् कर्ता कौन? .................... विश्व के अन्य अनेक दर्शनकारों की यह मान्यता है कि इस विश्व का सर्जन किसी परमात्मा ने किया है | हिन्दू लोगों की यह मान्यता है कि ब्रह्मा ने इस सृष्टि का सर्जन किया है, विष्णु इस सृष्टि का पालन करते है और महेश इस सृष्टि का विनाश करते है | जब कि जैन दर्शन की यह मान्यता है कि यह सृष्टि अनादि काल से है, इस सृष्टि पर जीवों का अस्तित्व भी अनादि काल से है / किसी भी परमात्मा विशेष ने इस सृष्टि का सर्जन नहीं किया है / इस संसार में जीव (आत्मा) भी अनादिकाल से है अर्थात् किसी भी परमात्मा ने किसी जीव विशेष को उत्पन्न नहीं किया है | "किसी बालक का जन्म हुआ' अथवा 'अमुकभाई की मृत्यु हो गई' यह हम व्यवहार से कहते हैं, परंतु वास्तव में आत्मा का न तो जन्म होता है और न ही मृत्यु ! कर्मबद्ध संसारी अवस्था में जब आत्मा एक देह का त्याग कर दूसरे देह को धारण करती है तो जिस देह का त्याग करती है, उस अपेक्षा से हम मृत्यु कहते हैं और जिस देह को धारण करती है, उसी को हम जन्म कहते हैं / अर्थात् 'जन्म' और 'मृत्यु' का शाब्दिक व्यवहार देह से जुड़ा हुआ है, न कि आत्मा से / आत्मा का न जन्म है और न ही मृत्यु / आत्मा अनादि है, इसका अर्थ है, आत्मा का कोई 'प्रथम भव' नहीं है / अनादि काल से इस संसार में आत्मा का अस्तित्व है और अनंत-काल तक संसार में आत्मा का अस्तित्व रहेगा। आत्मा के अनादिकालीन अस्तित्व की भाँति चौदह राजलोक प्रमाण इस विराट् विश्व का अस्तित्व भी अनादि काल से है / किसी ईश्वर विशेष को इस जगत् का कर्ता मानने पर हमारे सामने अनेक प्रश्न खडे होते हैं, जिनका निराकरण संभव नहीं है / जैसे 1) इस जगत् के निर्माण के पीछे ईश्वर का क्या प्रयोजन है ? कर्मग्रंथ (भाग-1)