________________ ( अद्भुत व आधर्यजनक जगत् / (यह लेख किसी अज्ञात लेखक की पुस्तक से लिया है / ) कुछ व्यक्तियों की यह मान्यता है कि "जो हम अपनी आँखों से देखते हैं, अपने कानों से सुनते हैं तथा अपनी अन्य इन्द्रियों से अनुभव करते हैं, केवल वही सत्य व वास्तविक है, इसके विपरीत अभौतिक व अतीन्द्रिय शक्तियों तथा आत्मा के अस्तित्व व पुनर्जन्म आदि की बातें कपोल कल्पना के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं / ऐसी बातों पर विश्वास करना अन्धविश्वास ही माना जायेगा / " परन्तु तथ्य तो यह है कि ऐसा समझना इन व्यक्तियों का भ्रम ही है / वास्तविकता तो यह है कि हमारी इन्द्रियों की शक्ति बहुत ही सीमित है / अपनी इन्द्रियों के माध्यम से हम जितना ग्रहण कर पाते हैं वह तो ज्ञान के विशाल भण्डार में समुद्र की तुलना में सुई की नोक पर लगे जल के बिंदु समान भी नहीं है। आज तो वैज्ञानिक भी यह स्वीकार करते है कि प्रकृति की अनेक घटनाएँ हमारी कल्पना से भी अधिक विलक्षण और आश्चर्यजनक हैं / ये वैज्ञानिक यह भी स्वीकार करते हैं कि आधुनिक विज्ञान भी प्रकृति के अनेक रहस्यों का स्पष्टीकरण करने में अभी तक समर्थ नहीं है / हम मनुष्य की इन्द्रियों की शक्ति को ही लेते हैं / मनुष्य की इन्द्रियों की शक्ति तो बहुत ही सीमित होती है / कुछ पशु-पक्षियों की इन्द्रियाँ तो मनुष्य की इन्द्रियों से बहुत ही अधिक संवेदनशील और तीक्ष्ण होती हैं / तथ्य तो यह है कि जैसे-जैसे मनुष्य ने वैज्ञानिक क्षेत्र में उन्नति की है वह प्रकृति से दूर होता गया है और उसकी इन्द्रियों की क्षमता कम होती गयी जबकि पशु-पक्षी अब भी प्रकृति के बहुत अधिक निकट हैं / इस सम्बन्ध में हम कुछ उदाहरण देते हैं. आज से लगभग दो हजार वर्ष पहले जब लिखने की परम्परा नहीं थी उस समय मनुष्य की स्मरण-शक्ति बहुत तेज होती थी / वह प्रत्येक बात को याद रखता था, क्योंकि उसके पास स्मरणशक्ति के अतिरिक्त याद रखने कर्मग्रंथ (भाग-1) 20