________________ उन शब्दों के स्पर्श का अनुभव तो होता ही है / परंतु उसके स्पर्श का स्पष्ट बोध श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा ही होता है / अति जोर की ध्वनि से कान के पर्दे फट जाते हैं, सिरदर्द होने लगता श्रोत्रेन्द्रिय रहित प्राणियों को भी शब्द के स्पर्श का अनुभव होता है / * तीड पक्षी के कान नहीं होने पर भी (चउरिन्द्रिय पक्षी) ढोल के तीव्र शब्दों से अपने शरीर पर हो रहे प्रहार का अनुभव करता है / इस कारण खेत में रहे तीड़ों को ध्वनि द्वारा दूर किया जाता था / / * जैन इतिहास में कालिकाचार्य की बहिन सरस्वती साध्वी का अपहरण करनेवाले गर्दभिल्ल राजा के पास रही गर्दभी विद्या की बात आती है / उस विद्या के बल से गधे के मुख की ध्वनि सुनने वाला तत्काल मर जाता था। आज वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा ध्वनि द्वारा शत्रुसेना के संहार के प्रयोग, सिद्ध किए जा रहे हैं। अमेरिका में यह प्रयोग किया गया कि ध्वनिकारक किरणों से पशुओं के स्नायुओं के टुकड़े किए जा सकते हैं और शरीर में 140 तापमान पैदा किया जा सकता है। अमेरिकन वैज्ञानिक ने सिद्ध किया है कि 1 सेकंड में 10 लाख कंपन वाली ध्वनि से हीरे के टुकड़े किए जा सकते हैं | जिस प्रकार तालाब में पत्थर फेंकने से अनेक तरंगें उत्पन्न होती हैं, उसी प्रकार हम जब बोलते हैं, तब हवा में तरंगें पैदा होती हैं / आवाज की ये तरंगें 1 सेकंड में 20 से 20,000 बार तक कंपित हो सकती हैं | इतने कंपन को हमारे कान सुन सकते हैं / इससे अधिक कंपन होने पर वे शब्द हमारे कान के लिए अश्राव्य बन जाते हैं / इस अश्राव्य ध्वनि तरंगों से मूत्राशय में रही पथरी को तोड़ा जा सकता है। कर्मग्रंथ (भाग-1) 39