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कहाँ तो मेरे पूर्वजोंका यह गरिमामय प्रभामंडल, और कहाँ मैं, धर्म और साहित्यके मामलेमें निपट अनपढ़, दफ्तरका बाबू, जिसे आठों याम अपने कामसे काम । जब मैं बनारस पढ़ने गया, तब तक मैंने अपने पिताजीके मुखसे भी 'धर्म प्ररूपणा' नहीं सुनी थी। चाचाजीके मुखसे ही पहली बार मैंने प्रवचन और व्याख्यान सुने । उन्हीं से कुछ थोड़ा-सा ग्रहण कर पाया। उन्हींके सहारेसे वह मनोबल जीवन में प्राप्त हुआ जिसके रहते साधनाके क्षेत्रमें अपने रंकपनेका अनुभव तो होता है, उसपर लज्जा या पश्चात्ताप नहीं । उनके जीवनको अपने लिए आदर्श और मार्गदर्शक जीवन मानकर उनसे जो कुछ भी सीखनेका प्रयास किया है, उसका एक छोटा अंश भी मेरे पल्ले पड़ जायेगा, तो मेरे लिए यह भव सार्थक हो जावेगा। उनके किस गुणकी चर्चा करूँ ममता में मातृत्व के समकक्ष, लाड़-प्यार देने में पितासे भी बड़े अनुशासनमें मृदुता पर कलईकी तरह बड़ी हुई कठोरता और हित चिन्तनामें सन्त-सी निर्मलता। इन सारे गुणों को एक साथ जोड़कर निस्पृहता और उदारता के साँचे में ढालनेपर जो व्यक्तित्व बनेगा, वह है मेरे चाचाजीका व्यक्तित्व ।
जबसे सुना समाज उनका अभिनन्दन करने जा रहा है, मैं बेचैन हूँ कि अभिनन्दनकी उस मालामें कमसे कम एक सुमन, या कमसे कम एक पंखुड़ी मेरी भी हो, जो प्रतीक बने श्रद्धा और विनयकी उन भावनाओं की, जिन्हें शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए सचमुच सम्भव नहीं है ।
विद्यावारिधि शास्त्रीजी
पं० शिखरचन्द्र शास्त्री, ईसरीबाजार ( बिहार )
पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री यथानाम तथागुण हैं । आपने जीवनभर विद्याकी आराधना की है । आपका कार्यक्षेत्र अत्यन्त व्यापक रहा है। आपकी वाचन, प्रतिपादन एवं लेखनशैलीकी मोहकताके कारण आपको चतुरस्रवी कहा जा सकता है। आपके द्वारा की गई जिनवाणीकी सेवा 'इदानीमप्येषा दुधजनपराः परिचिता' का स्मरण कराती है।
पूज्य व जीके जीवनकालमें आप उदासीनाश्रममें प्रायः आते रहे थे। आपकी सिद्धान्त सम्बन्धी चर्चाओं में उन्हें बड़ा आनन्द आता था वर्णीजी कहते थे कि पण्डितजी इस उक्तिको पूर्णत: चरितार्थ करते हैं :
'स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ।'
पूज्य वर्णोजीकी अन्तिम समाधिके समय आपका पूर्ण सहयोग रहा। आपके मधुर सामायिक पाठ तथा स्तोत्रपाठसे पूज्य वर्णीजीके शरीरमें अपार पीड़ा रहनेपर भी उसकी अनुभूति नहीं होती थी । वे नयी चेतनताका अनुभव करते थे ।
अध्ययन, अध्यापन, लेखन तथा भाषण ये चारों ही आपके जीवनके अंग बन गये हैं। आप स्थागमार्गी पण्डित हैं। आप जिनवाणी रूप कैलाशपतिके ऊपर उदित होते हुए अपूर्व शान्ति सुखदाता चन्द्र हैं । मैं उनके प्रति अपना आदरभाव व्यक्त करता हूँ ।
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