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'पद' शब्द व्याकरण का, 'वाक्य' शब्द मीसांसा का और 'प्रमाण' शब्द न्याय का बोधक है। बौद्धों के तर्क-प्रधान ग्रन्थों के नाम प्रमाण शब्द से युक्त हैं । आचार्य दिङ्-नाग का प्रमाण समुच्चय और आचार्य धर्मकोति का प्रमाण वातिक प्रसिद्ध है। ___ध्यान रहे-परमाणु, आत्मा आदि अतीन्द्रिय अर्थों के स्वरूप के निणय के लिये प्रयुक्त हेतुओं को जिस प्रकार न्याय कहा जाता था इस प्रकार वाक्य का अर्थ कराने के लिये जिन हेतुओं का प्रयोग होता था उनको भी न्याय नाम से कहा जाता था।
' ऋचा आदि मंत्रों के व्याख्यान रूप ब्राह्मण ग्रन्थों के वाक्यों का अर्थ निश्चित करने के लिये ऋषि जैमिनिने मीमांसा में जिन युक्तियों का प्रतिपादन किया है उनके लिये न्याय शब्द प्रसिद्ध है । आपस्तम्ब सूत्र (११-४-८-१३) में तथा (११-६-११-१३) में न्याय शब्द पूर्व मीमासा के अर्थ में है। इन्हीं न्यायों का प्रतिपदक होने के कारण माधव रचित प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम है- जैमिनोय न्याय माला'। इसी प्रकार न्याय कणिका, न्याय रत्नमाला-आदि पूर्व मीमांसा के ग्रथों में भी न्याय शब्द है।
(१) प्रमाण शब्द के समान न्याय के लिये तर्क शब्द का भी प्रयोग प्रचलित था। न्याय में हेतु अनुमान मुख्य है । इसलिये अनुमान को तर्क भी कहा जाता था । ब्रह्मसूत्र के कर्ता व्यास अतीन्द्रिय अर्थ के निर्णय में अनुमान को असमर्थ सिद्ध करने के लिये कहते हैं-'तर्काप्रतिष्ठानात्' ।
(२) इसी प्रकार-पदार्थों के कुछ धर्म, हेतुओं द्वारा प्रतिपादित नहीं हो सकते, इस तत्त्व को त्रिपिटक के वाक्य भी कहते हैं । त्रिपिटक का वाक्य है 'अतक्कावचरा धम्मा' (अतर्कावचरा धर्माः)