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: २१ : उदय : धर्म- दिवाकर का
श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
उदय : धर्म - दिवाकर का
नवदीक्षित मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने सं० हीरालालजी महाराज के साथ छावनी में किया । शब्दार्थ' तथा 'ओपपातिक सूत्र' का अध्ययन किया ।
प्रथम चातुर्मास (सं० १६५३ ) : झालरापाटन छावनी १९५३ का प्रथम चातुर्मास गुरुदेव श्री गुरु-सेवा में रत रहकर 'दशवैकालिक का
दूसरा वर्षावास (सं० १६५४ ) : रामपुरा छावनी चातुर्मास के पश्चात् गुरुदेव ने आपश्री को चैनरामजी महाराज के साथ अलग विहार करवाया। कोटा, रामपुरा, मणासा, नीमच, जावरा होते हुए आप पुनः गुरुदेव के पास पधारे और गुरुदेव की सेवा में रहकर दूसरा चातुर्मास रामपुरा में किया ।
प्रथम प्रवचन
विहार के समय श्रावकों ने प्रवचन सुनने की जिज्ञासा की । मुनि चैनरामजी महाराज ने चौथमलजी महाराज को प्रेरित किया। आपने प्रवचन दिया । व्याख्यान देने का प्रथम अवसर था, लेकिन आपकी शैली इतनी मधुर और विषय प्रतिपादन इतना स्पष्ट था कि श्रोता पूर्ण रूप से प्रभावित हुए । आग्रह करके श्रावक संघ ने आपश्री का एक व्याख्यान और करवाया ।
यह उनकी प्रवचन शैली की उत्तमता का प्रमाण है। इसके बाद तो उनकी प्रवचन शैली निखरती ही चली गई ।
तीसरा वर्षावास (सं० १९५५) : बड़ी सादड़ी (मेवाड़) तीसरा चातुर्मास भी आपने गुरुदेव के साथ बड़ी सादड़ी (मेवाड़) में किया। इस बीच आप जावरा दादागुरु श्री रतनचन्दजी महाराज के दर्शन-वन्दन हेतु गए थे। इस चातुर्मास में आपके शास्त्रीय ज्ञान और गहन अध्ययन की बहुत वृद्धि हुई ।
चौथा चातुर्मास (सं० १६५६ ) : जावरा
बड़ी सादड़ी का चातुर्मास करने के बाद आपश्री निम्बाहेडा तथा चित्तौड़ होते हुए पारसोली (मेवाड़) पधारे। वहाँ के राव रत्नसिंहजी मेवाड़ाधीश के सोलह जागीरदारों में से एक थे । उन्हें जैनधर्म का ज्ञान भी था और वे श्रद्धेय पंडित श्री रतनचन्दजी महाराज, गुरु जवाहरलालजी महाराज, कविवर श्री हीरालालजी महाराज आदि से प्रभावित भी थे। उनकी दैनिक चर्या जैन श्रावकों की सी थी। उन्होंने चौथमलजी महाराज के दर्शन करके अपने हार्दिक उद्गार व्यक्त किये - महाराजश्री ! एक दिन धार्मिक क्षेत्र में आपश्री का आदरणीय स्थान होगा । आपश्री जैन सिद्धान्तों के पारगामी विद्वान् बनोगे ।
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वहाँ से गुरुदेव के साथ विहार करते हुए आपश्री नारायणगढ़ पधारे। वहाँ नृसिंहजी महाराज का स्वास्थ्य ठीक न था । गुरुदेव इन्हें उनकी सेवा में छोड़ गए। इनकी सेवा से कुछ दिन बाद नृसिंहजी महाराज का स्वास्थ्य ठीक हो गया। आप उनके साथ विहार करते हुए मन्दसौर पधारे ।
शास्त्रज्ञ द्वारा प्रशंसा
एक दिन भूरा मगनीरामजी महाराज ने आपसे कहा – 'चौथमलजी आज व्याख्यान
तुम दो ।'
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