Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ श्रावक-वर्णनाधिकार जिन्हें सम्यक्त्व के आठ गुणों से विपरीत (उल्टे) जानना / (17) कुदेव (18) कुगुरु (19) कुधर्म (20 से 22) इन तीन के धारक (पूजकों) की सराहना करनेवाले - ये छह अनायतन तथा (23 से 25) देव- गुरुधर्म, इन तीन में मूढता - इसप्रकार इन पच्चीस दोषों से रहित ऐसे निर्मल दर्शन (श्रद्धा) से युक्त तीन प्रकार के अर्थात जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट संयमी जानना / ____ पाक्षिकों और साधकों में भेद (स्तर) नहीं हैं / नैष्टिकों में ही ग्यारह भेद हैं / पाक्षिक श्रावक के तो पांच उदम्बर अर्थात पीपल, बड, ऊमर, कठुम्बर, पाकर - इन पांचों के फल तथा मद्य, मधु, मांस सहित इन तीन मकार का प्रत्यक्ष में त्याग होता है / किन्तु आठ मूलगुणों में अतिचार होता है उनका कथन करते हैं - मांस में तो चमडे के संयोग ( के सम्पर्क ) में आये घी, तेल, हींग, जल आदि तथा रात्रि में भोजन, द्विदल (धान्य आदि दुफाड दालों को दही छाछ के साथ मिलाकर खाना), दो घडी से अधिक पहले छाना गया जल, बीधा (घुना हुआ) अन्न, इत्यादि मर्यादा से रहित वस्तुयें जिनमें त्रस जीवों की या निगोद की उत्पत्ति हो चुकी हो उनके भक्षण का दोष लगता है, पर प्रत्यक्ष पांच उदम्बर तथा तीन मकार का भक्षण नहीं करते हैं। सचित्त सात व्यसनों का भी सेवन नहीं करते / अनेक प्रकार की प्रतिज्ञाओं पूर्वक संयम का पालन करते हैं तथा धर्म का उनको विशेष पक्ष (रुचि) है, ऐसा पाक्षिक जघन्य संयमी जानना / ये प्रथम प्रतिमा का धारक भी नहीं है पर प्रथम प्रतिमा आदि के संयम का उद्यमी हुआ है, इसलिये इसका दूसरा नाम प्रारब्ध है। नैष्ठिक श्रावक के भेद नैष्ठिक (श्रावक) के ग्यारह भेद हैं - (1) दर्शन (2) व्रत (3) सामायिक (4) प्रोषध (5) सचित त्याग (6) रात्रि भोजन तथा दिन में