Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ परिशिष्ठ -2 311 गोम्मटसार की चर्चा का ज्ञान है / विशेष धर्मबुद्धि जीवों से मिलाप होगा। अन्य सबों से भाईजी टोडरमलजी को ज्ञान का क्षयोपशम अलौकिक है, जिनने गोम्मटसार आदि ग्रन्थों की संपूर्ण एक लाख श्लोक प्रमाण टीकायें बनाई हैं तथा अन्य भी पांच-सात ग्रन्थों की टीका बनाने का विचार है / (उनकी) आयु की अधिकता होने पर बनेगी (बन पावेगी)। धवला, महाधवला, जयधवला आदि ग्रन्थों को खोलने (मंगाकर उनका भाव स्पष्ट करने) का उपाय किया तथा वहां दक्षिण देश से अन्य तो पांच सात ग्रन्थ ताडपत्रों पर कर्णाटकी लिपि में लिखे यहां आये हैं / उनको मलजी (टोडरमलजी) पढते हैं तथा उनका यथार्थ व्याख्यान करते हैं अथवा कर्णाटकी लिपि में लिख लेते हैं / इत्यादि न्याय, व्याकरण, गणित, छंद, अलंकार का उनको ज्ञान है / ऐसी महंत बुद्धि के धारी इस काल में अन्य मिलना दुर्लभ है / अत: इनसे मिलने पर सर्व संदेह दूर होंगे / बहुत लिखने से क्या ? अपने हित के वांछक पुरुष शीघ्र आकर इनसे मिलें / अन्य भी देश-देश के साधर्मी भाई आवेंगे, उनसे मिलाप होगा। ___यहां दस-बारह, लेखक सदैव जिनवाणी लिखते तथा शोधते रहते हैं तथा एक ब्राह्मण पंडित को वेतन पर नौकर रखा हुआ है, जो बीसतीस बालकों को न्याय, व्याकरण, गणित शास्त्र पढाता है / सौ-पचास भाई-बहिनें चर्चा व्याकरण का अध्ययन करते हैं / नित्य सौ-पचास स्थानों पर (जिनमंदिरों में) जिन पूजन होता है / इस नगर में सप्त व्यसनों का अभाव है / भावार्थ:- इस नगर में कलाल, कसाई, वेश्या आदि नहीं रहते हैं तथा राज्य आदेश से जीव हिंसा की मनाई (बन्द) है / राजा का नाम माधवसिंह है, उसके राज्य में ऐसे कुव्यसन राजा की आज्ञा के कारण नहीं हैं / जैन लोगों का समूह बसता है / राजा के हाकिम (अधिकारीगण) सब जैन हैं तथा साहुकार लोग भी जैन हैं / यद्यपि अन्य भी हैं पर गौण हैं, मुख्य नहीं हैं / यहां जैन महाजनों के छह-सात अथवा