Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

View full book text
Previous | Next

Page 324
________________ परिशिष्ठ -2 309 योग्य भार वाले शास्त्र, जैनों के सारे प्रकार के यतियों के आचरण के, श्रावकों के आचरण के अथवा तीन लोक की रचना वर्णन के अथवा विशेष बारीक चर्चा के अथवा महंत पुरुषों (की जीवनियों) के कथन के पुराण अथवा मंत्र, तंत्र, यंत्र, छंद, अलंकार, काव्य, व्याकरण, न्याय, एकार्थकोष, नाममाला आदि भिन्न-भिन्न विषयों के शास्त्रों का भंडार मौजूद है / वहां अन्य भी बडे-बडे शहर हैं, उनमें भी शास्त्रों का समूह (भंडार) है / बहुत से शास्त्र ऐसे हैं जो बुद्धि की मंदता के कारण किसी से खुले नहीं (समझ में न आ सकने के कारण पढे नही जाते अथवा जिनका अर्थ स्पष्ट नहीं हो सका) / सुगम हैं वे ही पढे जाते हैं / ___ वहां के राजा तथा प्रजा भी जैन है / सुरंगपट्टन में पचास घर जैन ब्राह्मणों के हैं / वहां का राजा भी कुछ वर्ष पूर्व जैन ही था / यहां से साढे तीन सौ कोस दूर औरंगाबाद है। वहां से पांच सौ कोस आगे सुरंगपट्टण. है, उससे भी दो सौ कोस आगे जैनबद्री है / यहां से वहां तक बीच-बीच में अनेक बडे-बडे नगर हैं, उनमें बडे-बडे जिनमंदिर हैं तथा जैन लोगों का समूह रहता है / जैनबद्री से चार सौ कोस आगे खाडी समुद्र है / इत्यादि वहां की अद्भुत वार्ता जानना। ___ धवला आदि सिद्धान्त ग्रन्थ तो वहां भी नहीं पढे जाते / दर्शन करने मात्र हैं / वहां की यात्रा जुडती है (होती है) / देव उनके रक्षक हैं, अत: इस देश में सिद्धान्त ग्रन्थों का आना हुआ नहीं / पांच-सात आदमियों के जाने-आने में दो हजार रुपये का खर्च पडा / एक साधर्मी डालुराम की पर्याय वहां ही पूर्ण हो गयी / उन सिद्धान्त ग्रन्थों के रक्षक देव डालुराम के स्वप्न में आये थे, उनने ऐसा कहा था - हे भाई! तू इन सिद्धान्त ग्रन्थों को लेने आया है, ये सिद्धान्त ग्रन्थ उस देश में नहीं जावेंगे क्योकि वहां मलेच्छ पुरुषों का राज्य है / इस बात का उपाय करने में पांच-सात वर्ष लगे / पांच विश्वा (25%) विचार अब भी वर्तता है /

Loading...

Page Navigation
1 ... 322 323 324 325 326 327 328 329 330