Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ परिशिष्ठ -2 307 सूचना देकर उन्हें भी साथ लेकर संघ बनाकर मुहूर्त से पांच-सात दिन पहले शीघ्र पधारें / ऐसा उत्सव फिर इस पर्याय में दिखना दुर्लभ है / ___ यह कार्य यहां के राजा की आज्ञा से हुआ है तथा यह हुकुम हुआ है कि पूजा के अर्थ आपको जो भी वस्तुयें चाहिये वे सब दरबार (राज कोष) से लेलें / यह बात (हुकुम) उचित ही है क्योंकि धर्म राजा के चलाये ही चलता है / राजा की सहायता के बिना इतना बडा परम कल्याण का कार्य बन नहीं सकता तथा दोनों दीवान-रतनचन्द एवं बालचन्द - इस कार्य में अग्रणी हैं, अत: विशेष प्रभावना होगी। यहां (जयपुर नगर में) बडे-बडे अपूर्व जिनमंदिर बने हुये हैं / सभा में गोम्मटसारजी का व्याख्यान होता है जो दो वर्ष से तो चल रहा है तथा दो वर्ष पर्यन्त अभी और चलेगा। यह व्याख्यान टोडरमलजी करते हैं / यहां गोम्मटसार ग्रन्थ की अडतीस हजार (38,000), लब्धिसारक्षपणासार ग्रन्थ की तेरह हजार (13,000), त्रिलोकसार ग्रन्थ की चौदह हजार (14,000), मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ की बीस हजार (20,000), बडे पद्मपुराण ग्रन्थ की बीस हजार (20,000) पदों प्रमाण टीकायें हुई हैं, उनका दर्शन होगा / यहां बडे-बडे संयमी भी रहते हैं उनसे भी मिलना हो सकेगा। दो-चार भाई धवला, महाधवला,जयधवला लेने के लिये दक्षिण देश में जैनबद्री एवं समुद्र तक गये हैं / वहां जैनबद्री में धवला आदि सिद्धान्त ग्रन्थ ताडपत्रों पर लिखे कर्णाटक भाषा में विद्यमान हैं, जिनमें एक लाख सत्तर हजार (1,70,000) मूल गाथायें हैं / उनमें धवला की सत्तर हजार (70,000), जवधवला की साठ हजार (60,000), महाधवला की चालीस हजार (40,000) गाथायें हैं / उनके किसी अधिकार के अनुसार ही गोम्मटसार, लब्धिसार-क्षपणासार बने हैं।