Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ श्रावक-वर्णनाधिकार खर्चों) के लिये कुटुम्ब परिवार को देना, एक भाग का संचय (भविष्य के लिये एकत्रित) करना। ऐसा करने वाले को तो उत्कृष्ट श्रावक जानना / यदि (छह भाग करके) एक भाग दान में दे, तीन भाग भोजन के लिये एवं दो भाग संचय करे तो वह मध्यम दातार है। (दस भाग करके उनमें से) एक भाग दान में दे, छह भाग भोजन के लिये एवं तीन भाग का संचय करे वह जघन्य दातार है। यदि दसवां भाग भी दान में खर्च न करे तो उसका घर श्मशान के समान है / श्मशान में भी अनेक प्रकार के जीव जलते हैं तथा गृहस्थ के चूल्हे (रसोई घर) में भी नाना प्रकार के जीव जलते हैं / अथवा यह (दसवां भाग भी दान में न देने वाला) पुरुष कैसा है ? सबसे हल्की तो रुई है, तथा उससे भी हल्का आकडे का फूल है, उससे भी हल्का परमाणु है, और उससे भी हल्का याचक है, पर उससे भी हल्का दान रहित कृपण है / उसने (याचक ने) तो अपना सर्वस्व खो कर हाथ फैलाया है तथा याचना के लिये दीन वचन मुख से कहे हैं, चल कर आपके (दातार के) घर आया है, फिर भी उसे दान नहीं दिया, अत: दान रहित पुरुष याचक से भी हीन है। ____ धर्मात्मा पुरुष के मुख्य धर्म तो देव पूजा तथा दान ही हैं, बाकी के चार (छह आवश्यकों में से शेष चार) गुरु भक्ति, तप, संयम, स्वाध्याय तो गौण हैं / इसलिये सात स्थानों में धन खर्च करना उचित है - (1) मुनि (2) आर्यिका (3) श्रावक (4) श्राविका (5) जिन-मंदिर प्रतिष्ठा (6) तीर्थ यात्रा (7) शास्त्र लिखवाना (छपवाना) - ये सात स्थान जानना / ___ दान देने के चार भेद हैं (आगे केवल तीन का ही कथन किया है, चौथा कौनसा है यह नहीं बताया) / प्रथम तो दुःखित-भूखे जीव के समाचार पाकर उसके घर देने योग्य वस्तु पहुंचा देना, यह तो उत्कृष्ट है / उसे अपने घर बुलाकर दान देना, यह मध्यम दान है / अपना काम, सेवा कराकर देना, वह अधम दान है /