Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 83 विभिन्न दोषों का स्वरूप लकडी व कोयला काम में लेने योग्य है / इनमें भी कोयला तो सर्व प्रकार से त्रस-स्थावर जीवों से रहित प्रासुक (शुद्ध) है, अतः मुख्य रूप से जलाना उचित है / लकडी अधिकतर तो बीधी (घुनी हुई ) होती है, अतः बुद्धिमान पुरुष विशेष रूप से घुनी हुई, छिलके वाली, पोली, कानी, कपाडी लकड़ियों को छोडकर अघुनी, छेद रहित लकडी का प्रयोग करते हैं / इसमें आलस्य प्रमाद नहीं रखते / उनको जलाने में अगणित अपार पाप है, अतः (उन्हें) विवेक से काम लेने पर कम (पाप) लगता है / धर्मात्मा पुरुषों को ईंधन की विशेष सावधानी रखनी चाहिये। खोखली (पोली) लकडी में चींटियों, मकोडी, दीमक, कनखजूरा, सर्प आदि अनेक त्रस जीव बैठ जाते हैं, अत: बिना देखे जलाने पर सब के सब भस्म हो जाते हैं। ___ पार्श्वनाथ तीर्थंकर के समय कमठ निर्दय होता हुआ पंचाग्नि तप करता था, वहां पोली (खोखली) अधजली लकडी में पार्श्वनाथ ने अपने अवधिज्ञान से उसमें सर्प-सर्पणि को (जलते, मरते ) देखकर उन्हें णमोकार मंत्र सुनाया, जिससे उन्हें देव लोक की प्राप्ति हुई / इसी प्रकार बिना देखे ईंधन में जीवों का भस्म हो जाना जानना / अधिक क्या कहें? पानी की शुद्धता तलाब, कुंड, तुच्छ जल वाली बहती नदी, जिसमें से पानी न निकाला जाता हो ऐसा कुआ, बावडी का पानी तो छना होने पर भी अयोग्य है, इनके जल में त्रस जीवों की मात्रा जो इन्द्रियों द्वारा दिखने में आती है, ऐसी होती है / जिस कुये का जल चरस (पानी निकालने का चमडे का पात्र) अथवा पणघट के द्वारा (स्त्रियों आदि के द्वारा पीने के लिये नित्य पानी) निकाला जाता रहता हो, उसमें (उनके जल में) जीव नजर नहीं आते। ऐसे जल को कुये पर स्वयं जाकर अथवा अपना विश्वस्थ पुरुष जाकर दोहरे, सपाट, गांठ आदि से रहित ऐसे कपडे से, जिसमें