Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 256 ज्ञानानन्द श्रावकाचार शक्तियुक्त कांच लगे हैं तथा शक्तियुक्त रत्न ही उस सिंहासन में लगे हैं, वह बताते हैं - राजा सिंहासन पर बैठा अनुक्रम से झरोखों में से देखता है। ___ पहले झरोखे से देखने पर तो स्पर्श के (ज्ञान में आने वाले) आठ गुण लिये पदार्थ दिखाई देते हैं, पदार्थो का अन्य कुछ दिखता नहीं है / राजा सिंहासन पर बैठा दूसरे झरोखे से देखता है, तब पांच जाति के रसों की शक्ति लिये पदार्थ दिखते हैं, पदार्थो में अन्य विशेष गुण हो तो भी दिखते नहीं हैं / वही राजा सिंहासन पर बैठा तीसरे झरोखे से देखता है तो गंध जाति के दो प्रकार (सुगंध-दुर्गंध) ही के रूप पदार्थ दिखते हैं, पदार्थों में अन्य विशेष (गुण) हैं तो भी वे दिखते नहीं। राजा सिंहासन पर बैठा ही चौथे झरोखे से देखता है तब केवल पांच जाति के वर्ण ही दिखाई देते हैं, पदार्थो में अन्य विशेष हैं वे दिखाई देते नहीं / राजा सिंहासन पर बैठा-बैठा ही पांचवें झरोखे से देखता है तो पदार्थों में तीन प्रकार के शब्द ही दिखते हैं, पदार्थो में अन्य गुण होते हुये भी दिखाई देते नहीं। __यदि वह राजा सिंहासन पर बैठा-बैठा ही पांचों झरोखों से देखना छोडकर सिंहासन पर ही दृष्टि करके पदार्थो का विचार करता है तो वहीं (उस ही स्थान) के बीसों जाति के ये मूर्तिक पदार्थ तथा आकाश आदि अमूर्तिक पदार्थ सब ही दिखाई देते हैं / यदि झरोखों के बिना अथवा सिंहासन के बिना वहीं (उस ही स्थान) के पदार्थों को भी जानना चाहे तो जान नहीं पाता / अब यदि राजा को बंदीखाने से छोडकर महल के द्वार पर निकाल दिया जावे तो राजा को दशों दिशाओं के मूर्तिक तथा अमूर्तिक पदार्थ सब ही बिना विचार किये ही प्रतिभासित हों। राजा ही का देखने का यह स्वभाव है, कोई महल का तो है नहीं, उल्टा महल के निमित्त से तो ज्ञान आच्छादित होता (ढका जाता) है / कुछ ऐसी जाति के परमाणु झरोखे तथा सिंहासन के लगे हैं जिनके निमित्त से किंचित मात्र जानपना