Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 276 ज्ञानानन्द श्रावकाचार को ऐसा कहे कि तू तो मर गया, तब वह पुरुष अपने को मरा हुआ मानने लगे तो उस जैसा मूर्ख कौन होगा ? ___ यदि तू कहेगा कि मैं क्या करूं ? अमुक शास्त्र में ऐसा ही लिखा है। सर्वज्ञ के ऐसे ही वचन हैं, उन्हें झूठ कैसे मानूं ? उसे समझाते हैं - हे भाई ! प्रत्यक्ष प्रमाण से विरुद्ध हों वे आगम ग्रन्थ सच्चे नहीं हैं तथा उस आगम ग्रन्थ का कर्ता भी प्रमाणिक पुरुष नहीं है / यह नि:संदेह है कि जो आगम अनुमान प्रमाण से मेल खाये वह ही आगम प्रमाण सच्चा है तथा उसी आगम के कर्ता पुरुष प्रमाण हैं / पुरुष प्रमाण से वचन प्रमाण होता है तथा वचन के प्रमाणिक होने से ही पुरुष प्रमाणिक होता (माना जाता) है / इसप्रकार जो सर्वज्ञ-वीतराग हैं वे ही पुरुष प्रमाण (विश्वास करने योग्य) हैं। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल, इन छह पदार्थों से ही लोक की उत्पत्ती है। ये छहों द्रव्य अनादि निधन हैं, इनका कर्ता कोई नहीं है / यदि किसी को इनका कर्ता कहा जावे तो उस कर्ता को किसने बनाया ? यदि कोई यह कहे कि कर्ता अनादि निधन है, तो ये भी छह द्रव्य अनादि निधन हैं। अत: यह नियम निश्चित हुआ कि कोई पदार्थ किसी का कर्ता नहीं है / सभी पदार्थ अपने-अपने स्वभाव के कर्ता हैं तथा अपने-अपने स्वभाव से स्वयं ही परिणमन करते हैं। जीव द्रव्य का स्वभाव तो चेतन है तथा पुद्गल मूर्तिक स्वभाव वाला है / धर्म द्रव्य का चलने में सहकारी होना (निमित्त होना) स्वभाव है, अधर्म द्रव्य का चेतन तथा अचेतन सभी को ठहरने में निमित्त होना स्वभाव है / आकाश का अवगाहना (अन्य द्रव्यों को स्थान) देना असाधारण स्वभाव है, काल द्रव्य का वर्तना लक्षण हेतुत्व स्वभाव है / जीव द्रव्य (पदार्थ) तो (प्रत्येक जीव अलग-अलग) अनन्त हैं / पुद्गल द्रव्य उनसे (जीवों से ) भी अनन्त गुणे हैं / धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य एक है। आकाश द्रव्य भी एक ही है / काल के कालाणु असंख्यात पदार्थ