Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
View full book text
________________ कुदेवादि का स्वरूप 285 अपने-अपने माता-पिता से महादेव मुनि का सारा वृतान्त कहती हैं। उन लडकियों के माता-पिता ऐसा विचार करते हैं कि महादेव महापराक्रमी है, यदि हम अपनी इन लडकियों की शादी उससे नहीं करेंगे तो महादेव दुःख देगा / ऐसा विचार कर सभी अपनी लडकियां उसे परणा देते हैं / ___महादेव ने उन सभी लडकियों को भोगा तो उसके वीर्य के तेज के कारण सभी कन्यायें मरण को प्राप्त हुईं / अन्त में महादेव ने पर्वत नाम के राजा की पार्वती नामक पुत्री से शादी की जो उसके भोग को बर्दास्त कर सकी / अत: वह महादेव उस पार्वती को रात-दिन जहां-तहां भोगने लगा। किसी की भी शंका (छुपाव) नहीं रखता। सारे नगर के स्त्री-पुरुष एवं उस देश का राजा यह बात सुनकर एवं यह विपरीतता देखकर बहुत दु:खी हुये, परन्तु उसे जीतने में असमर्थ रहे, अत: और भी ज्यादा दुःखी हुये। तब पार्वती के माता-पिता ने पार्वती से कहा - तू महादेव से पूछ कि ये विद्यायें उससे कब दूर रहती हैं ? पार्वती के पूछने पर महादेव ने कहा- अन्य तो किसी भी समय दूर नहीं रहती, केवल तुमसे भोग करते समय दूर रहती हैं / ये समाचार पार्वती ने माता-पिता को कहे / राजा पर्वत ने यह भेद जानकर भोग करते समय ही महादेव को मारा / उन महादेव की विद्याओं के इष्ट दाता देव ने सारे नगर में महादुःख उत्पन्न किये तथा कहा कि हमारे स्वामी को तुमने क्यों मारा ? राजा ने कहा - मर गया वह तो वापस आवेगा नहीं, अन्य आप कहें जैसा हम करें / उस व्यन्तर देव ने कहा - भग (योनी) सहित महादेव के लिंग की पूजा करो। पीडा के भय से नगर में लोगों ने वही आकार बना कर पूजा करना प्रारम्भ किया तथा व्यन्तर देव के भय से कुछ काल तक पूजते रहे। भेड चाल जैसे यह प्रवाह जगत में चल निकला तथा देखा-देखी जगत में पूजा जाने लगा / वह ही प्रवृत्ति अभी भी चली आ रही है / जगत के जीवों को ऐसा ज्ञान नहीं है कि हम किसको पूज रहे हैं तथा