Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 311
________________ परिशिष्ठ - 1 जीवन -पत्रिका (ब्र. पं. रायमल्ल) आगे कुछ समाचार एकदेश जघन्य संयम के धारी रायमल्ल अपने सम्बन्ध में कहते हैं। यह असमानजाति पर्याय उत्पन्न हुये तीन वर्ष नव मास हुये, उस समय हमारे ज्ञेय को जानने की प्रवृत्ति निर्मल हुई, जो धारण शक्ति के बल से आयु पर्यन्त स्मृति में रही। तीन वर्ष नव मास पहले हम परलोक सम्बन्धी चारों गतियों में से किसी गति में अनन्त पुदगल परमाणु तथा एक हम दोनों मिलकर एक असमान जाति द्रव्य पर्याय को प्राप्त हुये थे, उसका व्यय हुआ। ___ उसी समय हम उस पर्याय सम्बन्धी नोकर्म शरीर को छोड कार्माण शरीर सहित इस मनुष्य भव में वैश्य कुल में उत्पन्न हुये। कैसे उत्पन्न हुये ? जैसे भिष्टा आदि अशुचि स्थान में लट-क्रमि आदि जीव उत्पन्न होते हैं, वैसे ही माता-पिता के रुधिर-शुक्र में आकर वहां नोकर्म जाति की वर्गणा को ग्रहण कर अन्तर्मुहूर्त काल में छहों पर्याप्तियां पूर्ण की। उसी समय रुधिर सहित नाक के श्लेष्मा के पुंज सदृश्य शरीर का आकार हुआ। बाद में अनुक्रम से बढ़ते-बढते कुछ दिनों बाद मांस के लोथडे सदृश्य आकार हुआ / फिर कुछ समय बाद सूक्ष्म आंख, नाक, कान, मस्तक, मुंह, हाथ-पांव आदि इन्द्रियां दृष्टि में आ सकें ऐसा आकार हुआ / इसप्रकार बढता-बढता एक बालिश्त (लगभग 8-9 इंच) प्रमाण आकार हुआ / इसप्रकार नव मास पर्यन्त उल्टा, सर नीचे पांव ऊपर, घुटनों के बीच मस्तक, चमडे की थैली से आच्छादित, माता की विष्टा

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