Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 302 ज्ञानानन्द श्रावकाचार फिर जिनधर्म के अतिशय से इस पापी का मान भंग हुआ तथा पुनः जिनधर्म का उद्योत हुआ। सर्व जिनमंदिरों का पुनः निर्माण हुआ, पहले की अपेक्षा जिनधर्म का प्रभाव दोगुना, तीन गुना, चार गुना प्रवर्तता / उस समय इस नगर में बीस तीस नये जिनमंदिर बने / उनमें दो जिनमंदिर तेरापंथ आम्नाय को लिये अद्भुत शोभा सहित बहुत विस्तार वाले बने / जहां निरन्तर हजारों पुरुष-स्त्रियां देवलोक के समान मंदिरजी में आकर महापुण्य उपार्जन करते हैं तथा दीर्घकाल के संचित पापों का नाश करते हैं / सौ-पचास पुरुष पूजा करते हैं, सौ-पचास भाषा शास्त्रों को पढते हैं, दस-बीस संस्कृत शास्त्र पढते हैं / सौ-पचास व्यक्ति चर्चा करने वाले हैं तथा नित्य प्रति के शास्त्र सभा के व्याख्यान में पांच सौ -सात सौ पुरुष तीन चार सौ स्त्रियां शास्त्राभ्यास करती हैं / देश-देश से प्रश्न यहां आते हैं, जिनका समाधान होकर वहां पहुंचता है / इत्यादि चतुर्थकालवत अद्भुत महिमा सहित इस नगर में जिनधर्म की प्रवृत्ति पाई जाती है / -.