Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 299
________________ 284 ज्ञानानन्द श्रावकाचार रुद्र की उत्पत्ति जैनों के निर्ग्रन्थ गुरुओं में से कोई गुरु तथा आर्यिका भ्रष्ट होकर कुशील का सेवन करते हैं / फिर मुनि तो तुरन्त ही दण्ड (प्रायश्चित) लेकर छेदेपस्थापन करते हैं तथा शुद्ध होकर पुनः मुनिव्रत धारण करते हैं / आर्यिका के गर्भ रह जाने पर गर्भ गिराया जाता नहीं है, अत: किसी शुद्ध स्थान पर नव मास पर्यन्त गर्भ को पूरा विकसित कर पुत्र को जन्म देकर किसी स्त्री अथवा पुरुष को सौंपकर अर्जिका भी उसीप्रकार दीक्षा धारण कर लेती है / बालक बडा होकर जब आठ-दश वर्ष का हो जाता है तब अन्य बालक “तेरी मां कौन है” पूछ-पूछ कर उसका हास्य करते हैं / तब वह बालक जिसके यहां पल रहा होता है उससे जाकर पूछता है - “मेरे माता-पिता कौन हैं, मैं किसका बेटा हूँ?" तब वे मुनि-आर्यिका का यथार्थ वृतान्त कह देते हैं। वह बालक अपने को मुनि-आर्यिका का पुत्र जानकर उन्हीं मुनिराज के पास दीक्षा धारण कर लेता है। ___ वह बालक प्रथम तो मुनि-आर्यिका के वीर्य से उत्पन्न हुआ होने के कारण महापराक्रमी तो होता ही है, दीक्षा धारण कर लेने के बाद मुनि सम्बन्धी तपश्चरण कर अनेक ऋद्धियां तथा अनेक विद्यायें सिद्ध कर लेता है / केवलज्ञानी अथवा अवधिज्ञानी मुनि के मुख से कथा सुनता है कि यह महादेव स्त्री के संयोग से मुनि पद से भ्रष्ट होगा / महादेव मुनि पद से भ्रष्ट होने के भय से एकान्त पर्वत आदि पर ध्यान धरता है। वहां अनेक बालिकायें आकर स्नान क्रीडा आदि करती हैं / वह मुनि उन बालिकाओं के समस्त वस्त्र ले लेता है तथा बालिकाओं के मांगने पर भी नहीं देता है तथा कहता है तुम मुझसे शादी करो तो वस्त्र दूं / तब वे लडकियां कहती हैं कि हम क्या जाने ? हमारे माता-पिता जानें / इस पर वह महादेव कहता है कि तुम्हारे मां-बाप शादी करें तो शादी कर लोगी यह स्वीकार करो ? इसप्रकार प्रतिज्ञाबध कर उनके वस्त्र देता है / वे लडकियां जाकर

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