Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 282 ज्ञानानन्द श्रावकाचार दिखाई देती है (जैसे चन्द्रमा आदि जो बहुत दूर है दिखाई देते है ) / केवलज्ञानी अथवा अवधिज्ञानी दूरवर्ती सूक्ष्म वस्तुओं को भी निर्मल देखते हैं / चन्द्रमा, सूर्य के विमान ऐसे छोटे हों तो दूर से कैसे दिखाई दें ? यह नियम है। ____ कोई कहेगा कि ज्योतिष देव, ग्रह भव्य तो हैं, पर संसारी जीवों को दुःख देते हैं, अत: इन्हें पूजने, इनके लिये दान करने पर ये शान्त रहते हैं / उससे कहते हैं - हे भाई ! तेरी भ्रम बुद्धि है, ये ज्योतिष देवों के विमान अढाई द्वीप में स्थित मेरू पर्वत के चारों ओर गोलाई (गोल क्षेत्र) में प्रदक्षिणा रूप भ्रमण करते हैं। किसी ज्योतिष देव का विमान शीघ्र गमन करता है, कोई विमान मंद गमन करता है / उनकी चाल को देखकर अथवा उनकी चाल में किसी का जन्म आदि देखकर विशेष ज्ञानी आगामी होतव्यता (होनहार -भवितव्यता) को बताते हैं। इसका उदाहरण कहते हैं - जैसे सामुद्र के चिन्ह (हस्त रेखायें आदि) देखकर उसकी होतव्यता बताते हैं अथवा उसको वैसा (अपने स्वार्थ वश अपने कहे अनुसार करने के लिये ) भवितव्यता बताते हैं / जैनागम में उसी प्रकार होतव्यता बताने के लिये आठ प्रकार का निमित्त ज्ञान है / उनमें से एक ज्योतिष निमित्त ज्ञान है / ये आठ प्रकार के निमित्त ज्ञान किसी ईति भीती (अच्छा बुरा होनहार) टालने में तो समर्थ हैं नहीं, समर्थ हों तो इन्हें पूजें। इसी भाँति हरिण, गिलहरी, चिडिया, वायस (कौआ) इत्यादि का सगुन ( उस समय की स्थिति ) आगे होने वाले होनहार को बता सकने के लिये कारण रूप हैं, पर क्या इनको पूजने से ईति-भीती टाली जा सकती है ? कदापि नहीं टाली जा सकती / इसप्रकार ज्योतिष देवों को पूजने अथवा उनके लिये दान देने पर ईति-भीती अंश मात्र भी टल नहीं सकती, उल्टा अज्ञानता से महा कर्म बंध होता है / जिनेश्वर देव को पूजने पर ही शान्ति होती है, अन्य उपाय तीन लोक -त्रिलोक में हैं