Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 287 कुदेवादि का स्वरूप अथवा तरुण हो जाने पर बालक अवस्था के कार्य नहीं करता, इत्यादि प्रकार सर्वत्र जानना / जैसा कृष्णजी के प्रभुत्व शक्ति का वर्णन जैन सिद्धान्त में किया है, वैसा वर्णन अन्य मतों में नहीं है। वे कृष्णजी तीन खंड के स्वामी थे। बहुत से देव, विद्याधर तथा मुकुटबंध राजा उनकी सेवा करते थे तथा कोटी शिला उठाने जैसा उनमें बल था / नाना प्रकार के वैभव से संयुक्त थे तथा निकट भव्य हैं / शीघ्र ही तीर्थंकर पद प्राप्तकर मोक्ष जावेंगे / फिर भी वे राज्य अवस्था में नमस्कार करने योग्य नहीं थे / नमस्कार करने योग्य दो ही पद हैं, एक तो केवलज्ञानी का तथा दूसरा निर्ग्रन्थ गुरु का। अतः मोक्ष के चाहने वालों के द्वारा राजा को नमस्कार करना कैसे संभव होता / कृष्ण गोपियों के साथ गली-गली में नाचते फिरे, बंसी बजाते फिरे, इत्यादि नाना क्रियाओं का सद्भाव बताते हैं, वह कैसे है ? वह बताते हैं - भाई के स्नेह के कारण बलभद्रजी ने स्वर्ग से आकर नाना प्रकार चेष्ठायें की थीं, वह प्रवृत्ति चली आ रही है / जगत का यह स्वभाव है कि जैसा देखें वैसा ही मानने लग जाते हैं, नफे-नुकसान का विचार नहीं करते / अज्ञान के वश यह जीव क्या-क्या अयथार्थ श्रद्धान नहीं करता ? ___ अन्य मान्यतायें :- कोई यह कहते हैं कि हरि की ज्योति है उसमें से चौबीस अवतार निकले हैं / कोई कहता है कि सब से बडी तो भवानी है / कोई कहता है कि चौबीस तीर्थंकर, चौबीस अवतार तथा चौबीस पीर एक ही हैं / कहने मात्र नाम में संज्ञा भेद है, वस्तु भेद नहीं है / कोई गंगा, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, इत्यादि नदियों को तारण-तरण मानते हैं। कोई गाय को तारण-तरण मानते हैं कि गाय की पूंछ में तैतीस करोड़ देवता रहते हैं। कोई जल, पृथ्वी, अग्नि, वनस्पति, को परमेश्वर का रूप मानते हैं / कोई भैरव, क्षेत्रपाल, हनुमान को मानते हैं। कोई गणेश को पार्वती पुत्र मानते हैं / ऐसा विचार नहीं करते कि गंगा आदि जडअचेतन पदार्थ कैसे तारेंगी ? एक पूंछ में तैतीस करोड देव कैसे निवास